
प्रेम का उपहार दिया नहीं जा सकता, वह प्रतीक्षा करता है कि उसे स्वीकार किया जाए।

प्रथम दर्शन में ही सज्जन व्यक्ति उपहार के रूप में प्रणय को समर्पित करता है।

प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन् हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है।

हमारे पास हर चीज़ को तुच्छ बनाने का अद्भुत उपहार है।