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शत्रु पर कविताएँ

शत्रु ऐसे अमित्र को

कहा जाता है जिसके साथ वैमनस्य का संबंध हो और जो हमारा अहित चाहता हो। आधुनिक विमर्शों में उन अवधारणाओं और प्रवृत्तियों की पहचान भी शत्रु के रूप में की गई है जो प्रत्यक्षतः या परोक्षतः आम जनमानस के हितों के प्रतिकूल सक्रिय हों। प्रस्तुत चयन में शत्रु और शत्रुता विषय का उपयोग कर वृहत संदर्भ-प्रसंग में प्रवेश करती कविताओं का संकलन किया गया है।

एक छोटा-सा निमंत्रण

यानिस रित्सोस

तुम

शुन्तारो तानीकावा

सकुशल अपार

नवीन सागर

दुश्मनी

अंद्रेई वोज़्नेसेंस्की

नए युग में शत्रु

मंगलेश डबराल

दुश्मन

केदारनाथ सिंह

मेरे दुश्मन

असद ज़ैदी

शत्रुओं को

सच्चिदानंद राउतराय

युद्ध

श्रीविलास सिंह

शत्रु

सुधीर रंजन सिंह

बजते हैं कान

नवीन सागर

समझ

कुंदन सिद्धार्थ

एक नालायक़ अकेला

विनय विश्वास

दुश्मन

शरद बिलाैरे

रक़ीब का राग पूरबी

अम्बर पांडेय