दुनिया विस्तृत रंगमंच है

duniya vistrit rangmanch hai

निधि अग्रवाल

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दुनिया विस्तृत रंगमंच है

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    अच्छे होने की एक बड़ी समस्या यह भी है

    कि आपको किसी की अच्छाई पर संशय नहीं होता।

    आपको लगता है गर यह दुनिया है तो इसी दुनिया में

    कहीं कहीं अच्छे लोग ज़रूर उपस्थिति हैं।

    आप मानते हैं कि लोगों को अच्छा होना ही चहिए।

    आप हर जगह केवल अच्छाई तलाशते हैं।

    इस सत्य के प्रति आँखे मूँदे कि अगर दुनिया वाकई अच्छी होती

    तो आप अकेले होकर किसी भीड़ में हँस-गा रहे होते।

    आप मंत्रमुग्ध मोर का नाच देखते हैं।

    अमुक आएँगे बताएँगे देखो इसके पैर कैसे कुरूप हैं।

    आप कहेंगे लेकिन नाच कैसा सुंदर

    वो कहेंगे हुँह पैर तो देखो।

    आपका मन उचट जाएगा।

    पैरों की कुरूपता से नहीं।

    उनकी विचारों की कुरूपता से।

    अब आप पुनः नाच देखने लगते हैं तो ध्यान देते हैं।

    पैरों पर नहीं, रंगों पर।

    पंखों के मोहक रंग सब नकली है।

    नहीं-नहीं पूरे पंख ही नकली हैं।

    आँखों में कुछ किर-किराता है।

    आप आँख रगड़ते हैं। पुनः खोलते हैं।

    सामने क़रीने से पंख रखे हैं और एक कुरुप वीभत्स जीव

    बेध्यानी में गहरी साँसें ले रहा है।

    आपके गले में कुछ फँसता है। इसे निगल लीजिए।

    रुकिए, कहीं जाइए नहीं। जीव उठता है।

    नफ़ासत से एक एक पंख सजाता है।

    अब नाच स्टेज पर हो रहा है।

    आप वापस लौटना चाहते हैं?

    माफ़ कीजिए। नहीं जा सकते।

    आप अदृश्य धागों से बंध चुके हैं।

    आप अपनी पूरी शक्ति लगाकर बंधन तोड़ देते हैं।

    पुनः माफ़ी। आप अभी भी नहीं जा सकते।

    आपकी तमाम कोशिशों को नकारती

    भीड़ आपको भीतर धकेल देती है।

    हॉल खचा-खच भर चुका है।

    लोग नृत्य की प्रशंसा में ताली बजा रहे हैं।

    जिन्होंने पैरों की कुरूपता दिखाई थी,

    वे वन्स मोर वन्स मोर चिल्ला रहे हैं।

    मंचन स्टेज पर भी है स्टेज के नीचे भी।

    आप किस के लिए ताली बजाना चाहते हैं?

    दुविधा में हैं? कोई नहीं पंख वही रहेंगे। नर्तक बदलते जाएँगे।

    नृत्य वही जारी है। आप ऊब गए? एकाँत चाहते हैं।

    माफ़ कीजिए। क्या आप देख नहीं पा रहे

    कि अब हॉल में सबके पास सुंदर पंख हैं।

    वे सब मित्र हैं और मित्रता स्थाई करने के लिए

    एक साझा शत्रु आवश्यक है।

    उन सबकी अँगुलिया आपकी ओर उठी हैं।

    फुस-फुसाहट में आपका नाम है।

    माफ़ कीजिए। नहीं, माफ़ी माँग लीजिए।

    क्या आप अभी तक समझ नहीं पाए?

    छद्म पंखों की इस महफ़िल में आप सबसे कुरूप इंसान हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निधि अग्रवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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