कृपाराम के दोहे
अरुन नयन खंडित अधर, खुले केस अलसाति।
देखि परी पति पास तें, आवति बधू लजाति॥
ऐसी आजु कहा भई, मो गति पलटे हाल।
जंघ जुगल थहरत चलत, डरति बिसूरति बाल॥
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सुरत करत पाइल बजै, लजै लजीली भूरि।
ननद जिठानी की सखी, हाँसी हिए बिसूरि॥
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एक ब्रह्ममय सब जगत, ऐसे कहत जु बेद।
कौन देत को लेत सखि, रति सुख समुझि अभेद॥
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कछु जोबन आभास तें, बढ़ी बधू दुति अंग।
ईंगुर छीर परात में, परत होत जो रंग॥
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वेद पुरान विरंचि सिव, महिमा कहत बिचारि।
ऐसे नंदकिसोर के, चरन कमल उरधारि॥
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बिरह सतावै रैन दिन, तऊ रटै तव नाम।
चातकि ज्यों स्वाती चहै, पाती चहै सुबाम॥
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खिझवति हँसति लजाति पुनि, चितवति चमकति हाल।
सिसुता जोबन की ललक, भरे बधूतन ख्याल॥
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भरि लोचन बोली प्रिया, कुंज ओट रिसठानि।
पाए जानि तुम्हें अबै, करत प्रीति की हानि॥
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बीति रैनि आए कहा, भोर भएँ धन देहु।
जओ जहाँ भावै तहाँ, यों बोली तजि नेहु॥
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