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गुरु तेगबहादुर

1621 - 1675 | अमृतसर, पंजाब

सिक्खों के नौवें गुरु। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण। मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए महान शहादत देने वाले क्रांतिकारी संत।

सिक्खों के नौवें गुरु। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण। मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए महान शहादत देने वाले क्रांतिकारी संत।

गुरु तेगबहादुर के दोहे

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धन दारा संपत्ति सकल, जिनि अपनी करि मानि।

इन में कुछ संगी नहीं, नानक साची जानि॥

विरध भइओ सूझै नहीं, काल पहुँचिओ आन।

कहु नानक नर बावरे, किउ भजै भगवान॥

जिह सिमरत गत पाइये, तिहि भज रे तैं मीत।

कह नानक सुन रे मना, अउधि घटति है नीत॥

घटि-घटि मैं हरि जू बसै, संतन कह्यो पुकारि।

कह नानक तिह भनु मना, भउ निधि उतरहि पारि॥

तरनापो इउँही गइओ, लिइओ जरा तनु जीति।

कहु नानक भजु हरि मना, अउधि जाति है बीति॥

तनु धनु संपै सुख दिओ, अरु जिह नीके धाम।

कह नानक सुनु रे मना, सिमरत काहे राम॥

जगत भिखारी फिरत है, सब को दाता राम।

कहु नानक मन सिमरु, तिह पूरन होवहिं काम॥

पतित उधारन भै हरन, हरि अनाथ के नाथ।

कहु नानक तिह जानिहो, सदा बसतु तुम साथ॥

राम नाम उर में गहिओ, जाके सम नहिं कोय।

जिह सिमरत संकट मिटै, दरस तिहारो होय॥

जग रचना सब झूठ है, जानि लेहु रे मीत।

कहु नानक थिर ना रहे, जिउ बालू की भीत॥

सिरु कँपिओ पगु डगमगै, नैन ज्योति ते हीन।

कहु नानक इह विधि भई, तऊ हरि रस लीन॥

जिह घटि सिमरन राम को, सो नर मुक्ता जान।

तिहि नर हरि अंतर नहीं, नानक साची मान॥

सुवामी को गृह जिउ सदा, सुआन तजत नहिं नित्त।

नानक इह विधि हरि भजउ, इक मन होइ इक चित्त॥

निज करि देखिओ जगत में, कोइ काहु को नाहिं।

नानक थिर हरि भक्ति है, तिह राखो मन माहिं॥

बाल ज्वानि और बृद्धपन, तीनि अवस्था जान।

कहु नानक हरि भजन बिनु, बिरथा सब ही मान॥

राम गइओ रावनु गइओ, जा कउ बह परिवार।

कह नानक थिर कछु नहीं, सुपने जिउँ संसार॥

गरव करत है देह को, बिनसै छिन में मीति।

जिहि प्रानी हरि जस कहिओ, नानक तिहि जग जीति॥

माया कारनि ध्यावहीं, मूरख लोग अजान।

कहु नानक बिनु हरि भजन, बिर्था जन्म सिरान॥

सुख में बहु संगी भए, दुख में संगि कोइ।

कहु नानक हरि भजु मना, अंत सहाई होइ॥

जतन बहुत मैं करि रहिओ, मिटिओ मन को मान।

दुर्मति सिउ नानक फँधिओ, राखि लेह भगवान॥

जो उपजिओ सो विनसिहै, परो आजु के काल।

नानक हरि गुन गाइ ले, छाड़ि सकल जंजाल॥

संग सखा सब तजि गये, कोउ निबहिओ साथ।

कहु नानक इह विपत में, टेक एक रघुनाथ॥

भय नासन दुर्मति हरण, कलि में हरि को नाम।

निस दिनि जो नानक भजे, सफल होइ तिह काम॥

विखिअन सिउ काहे रचिओ, निमिख होहि उदास।

कहु नानक भजु हरि मना, परै जम की फास॥

जिह्वा गुन गोविंद भजहु, करन सुनहु हरि नाम।

कहु नानक सुन रे मना, परहि जम के धाम॥

निश दिन माया कारणें, प्रानी डोलत नीत।

कोटन में नानक कोऊ, नारायण जिह चीत॥

बल होया बंधन छुटे, सब किछु होत उपाय।

सब कुछ तुमरे हाथ में, तुम ही होत सहाय॥

तनु धनु जिह तोकउ दिओ, तासिउ नेहु कीन।

कहु नानक नर बावरे, अब किउ डोलत दीन॥

असतति निंदिआ नाहिं जिह, कंचन लोह समानि।

कह नानक सुन रे मना, मुक्त ताहि तैं जानि॥

पाँच तत्त कौ तनु रचिउ, जानहु चतुर सुजान।

जिह ते उपजिउ नानका, लीन ताहि मैं मान॥

जो प्रानी निसि दिनि भजै, रूप राम तिह जानु।

हरि जन हरि अंतरु नहीं, नानक साची मानु॥

जिहि माया ममता तजी, सब ते भयो उदास।

कह नानक सुनु रे मना, तिइ घटि ब्रहम-निवास॥

जतन बहुत सुख के किये, दुख को कियो कोइ।

कहु नानक सुन रे मना, हरि भावे सो होइ॥

सुख-दुख जिह परसै नहीं, लोभ मोह अभिमान।

कहु नानक सुन रे मना, सो मूरत भगवान॥

जिहि विषिया सगरी तजी, लिओ भेख बैराग।

कह नानक सुन रे मना! तिह नर माथै भाग॥

जो सुख को चाहे सदा, सरनि राम की लेह।

कहु नानक सुनु रे मना, दुर्लभ मानुख देह॥

करणो हुतो सु ना किओ, परिओ लोभ के फंद।

नानक समये रमि गइओ, अब क्यों रोवत अंध॥

प्रानी राम चेतई, मद माया के अंध।

कहु नानक हरि भजन बिनु, परत ताहि जम फंद॥

जैसे जल ते बुदबुदा, उपजै बिनसै नीत।

जग रचना तैसे रची, कहु नानक सुन मीत॥

जो प्रानी ममता तजै, लोभ मोह अहँकार।

कह नानक आपन तरै, औरन लेत उद्धार॥

झूठे मानु कहा करै, जगु सुपने जिउ जान।

इन में कछु तेरो नहीं, नानक कहिओ बखान॥

जिउ स्वप्ना और पेखना, ऐसे जग को जान।

इन मैं कछु साचो नहीं, नानक बिन भगवान॥

भय काहू कउ देत नहिं, नहिं भय मानत आनि।

कह नानक सुन रे मना, गिआनी ताहि बखानि॥

जिहि पानी हउ मैं तजी, करता राम पछान।

कहु नानक वह मुक्त नर, यह मन साची मान॥

तीरथ व्रत और दान करि, मन में धरे गुमान।

नानक निषफल जात हैं, जिउ कूँचर असनान॥

मन माइआ में रमि रह्यो, निकसत नाहिन मीत।

नानक मूरत चित्र जिउं, छाड़त नाहिनि भीत॥

जन्म-जन्म भरमत फिरिओ, मिटिओ जम को त्रासु।

कहु नानक हरि भजु मना! निर्भय पावहि बासु॥

नाम रहिओ साधू रहिओ, रहिओ गुरु गोविंद।

कहू नानक इह जगत में, किन जपिओ गुरु मंद॥

मनु माइआ में फँधि रहिओ, बिसरिओ गोबिंद नाम।

कहु नानक बिनु हरि भजन, जीवन कउने काम॥

हरख शोक जा के नहीं, बैरी मीत समान।

कहु नानक सुन रे मना, मुक्ति ताहि तैं जान॥

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