भारंगम का भव्य आरंभ
रहमान 29 जनवरी 2025
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली में—भारत रंग महोत्सव के 25वें संस्करण की भव्य शुरुआत ‘रंग संगीत’ आयोजन से हुई। इस साल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय अपने 65 वर्ष और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की रिपर्टरी कंपनी 60 वर्ष पूरे कर रहा है। इन 60 वर्षों की रंग-यात्रा में अलग-अलग शैलियों के नाटकों में विभिन्न लोक शैलियों से सजे गीत-संगीत की ऐसी लोकप्रियता रही कि दर्शक कई-कई बार केवल गीत-संगीत का आनंद लेने के लिए भी नाटक देखने आते रहे हैं। इस रंग-यात्रा में संगीत प्रधान नाटकों की प्रमुख भूमिका रही है। ‘रंग संगीत’ की प्रस्तुति एनएसडी रंगमंडल के कलाकार और निर्देशक प्रोफ़ेसर अजय कुमार ने की।
संगीत की अपनी एक अलग भाषा है, जो संसार की सभी भाषाओं में सर्वोत्तम है। इस भाषा की एक ख़ास बात है कि इसे बोलने, सुनने और महसूस करने वाले की भी आत्मा झूम उठेगी। ‘रंग संगीत’—संगीत की भाषा का सबसे सरल रूप है, जिसमें लयबद्ध तरीक़े से कहानी सुनाई जाती है; जिसे सुनते हुए हमारा मन स्मृतियों में कहीं गहरे खो जाता है और वर्तमान में कुछ ढूँढ़ने के लिए बेचैन हो उठता है। यह एक साथ अनगिनत लोगों से एकल संवाद कर सकता है।
‘रंग संगीत’ की शुरुआत केरल के शास्त्रीय और लोक परंपराओं से गहरे जुड़े नाट्यविद, रंग निर्देशक, प्रशिक्षक, पद्मभूषण के एन पणिक्कर की रचना नाटक ‘मत्तविलास’ की एक अद्भुत संगीत रचना से हुई। के एन पणिक्कर की रचना के बाद भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार पद्मश्री बी वी कारंत को याद करते हुए, उनके नाट्य संगीत ‘गजाननम् भूतगणादि सेवितम’ को प्रस्तुत किया गया। बी वी कारंत राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक, भारत भवन रंगमंडल, भोपाल के संस्थापक निदेशक, कर्नाटक रंगायन (मैसूर) के संस्थापक निदेशक रहे। रंगमंच के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए, उन्हें संगीत नाटक अकादमी, कालिदास सम्मान, अमृतलाल नागर आदि कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। तुग़लक़, छोटे सैयद-बड़े सैयद, बरनम वन, अग्नि और बरखा, अनामदास का पोथा जैसे रंगमंडल के चर्चित नाटकों को उन्होंने ही अपने संगीत से सजाया था। गजानन की स्तुति के बाद, ‘नाव भी है तैयार मुसाफ़िर’ गीत की प्रस्तुति हुई, जो मज़दूरों के संघर्ष की गाथा है।
अपने समय में रंग-संगीत में एक अलग तरह के प्रयोग करने के लिए विख्यात पद्मभूषण हबीब तनवीर, जिन्होंने रंगमंडल के लिए 1989 में मैक्सिम गोर्की के नाटक ‘दुश्मन’ का निर्देशन किया और संगीत भी तैयार किया। हबीब साहब भारतीय रंगमंच में लोक कलाओं और स्थानीय बोलियों की जड़ों को मजबूती से स्थापित करने वाले नाटककार, रंग निर्देशक, कवि और अभिनेता रहे हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को रंग प्रशिक्षण देकर ‘चरणदास चोर’ नाटक तैयार किया, जिसका मंचन दुनिया के विभिन्न देशों में किया गया है।
रंगमंच की दुनिया में सरल, सहज, लोकप्रिय संगीत रचनाओं के लिए पहचाने जाने वाले पंचानन पाठक का रंगमंडल के साथ लंबा जुड़ाव रहा है। रंगमंडल की स्थापना के शुरुआती वर्षों में कई महत्त्वपूर्ण नाटकों जैसे ‘लहरों के राजहंस’, ‘अंधायुग’, ‘द फ़ायर’ आदि का संगीत उन्होंने तैयार किया। तक़रीबन 30 वर्षों बाद 1996 में पंचानन पाठक ने रंगमंडल के चर्चित नाटक ‘थैंक्यू बाबा लोचनदास’ का लोकप्रिय संगीत तैयार किया। ‘पाँच रुपइया दे दे रे बालम...मेला देखन जाऊँगी’ की एकल प्रस्तुति अभिनेत्री पूजा के द्वारा बड़े ही सुंदर तरीक़े से किया गया।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जन्मशती के अवसर पर रंगमंडल ने उनकी कविताओं की सांगीतिक प्रस्तुति की थी, जिसमें संगीत रचना लोकेंद्र त्रिवेदी द्वारा किया गया था। लोकेंद्र त्रिवेदी 1977 के एनएसडी स्नातक और पुणे फ़िल्म संस्थान से भी अभिनय में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उन्होंने लोक नाट्य— नाच, नौटंकी, करियाला, भांडपाथेर, पहाड़ी रामलीला, ख्याल, स्वांग, भवाई, तमाशा, आल्हा रुदल, पाला गायन, अंकिया भावना जैसे उनके पारंपरिक लोक और शास्त्रीय रंग शैलियों पर उन्हीं क्षेत्रों में घूमकर प्रस्तुतिकरण और प्रदर्शन में आधुनिक प्रयोगों से जुड़े अहम काम को किया है। उन्होंने रा ना वि रंगमंडल के लिए आफ़ताब फैजाबादी, कभी न छोड़ें खेत, विरासत, नौकर शैतान मालिक हैरान, मित्रों मरजानी जैसे कई नाटकों का संगीत तैयार किया है। ‘रंग संगीत’ का संयोजन भी लोकेंद्र त्रिवेदी के द्वारा किया गया। ‘पथ दीप जले...’ रसिकलाल पारिख द्वारा रचित नाटक ‘शर्विलक’ का एक गीत है। जिसकी प्रस्तुति मोहक थी।
1990 में रा ना वि से निर्देशन में विशेषज्ञता प्राप्त संजय उपाध्याय देश के प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक और संगीत सर्जक हैं। ये देशज रंगकर्म और विशेषकर लोक संगीत के नवाचारी प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं। ऋषिकेश सुलभ लिखित, देवेंद्र राज अंकुर द्वारा निर्देशित और संजय उपाध्याय के संगीत से सजी बटोही नाटक का गीत ‘भादो रैन गहन अंधियारा...’ दर्शकों के आँखों को नम कर देने वाली थी।
‘रंग संगीत’ का समापन नाट्यशास्त्र की परंपरा के अनुसार भरत वाक्य से हुआ। जिसमें रीता गांगुली की संगीत रचना ‘ओ नट देवता...’ को दर्शक और कलाकारों ने एक साथ मिलकर गाया। रीता गांगुली रा ना वि के साथ 1968 में अभिनय संकाय के अध्यापक रूप में जुड़ीं। जहाँ उन्होंने कई सफ़ल नाटक का निर्देशन किया।
‘रंग संगीत’ के पूर्व भारत रंग महोत्सव में इस बार के रंगदूत राजपाल यादव सहित अभिनेत्री मीता वशिष्ठ और गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया गया। दीप प्रज्वलन संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, फ़िल्म अभिनेता और सांसद रवि किशन, ज्वाइंट सेक्रेट्री उमा नंदूरी, रा ना वि के वाइस चेयरमैन भरत गुप्त, निदेशक चितरंजन त्रिपाठी के द्वारा किया गया।
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
30 दिसम्बर 2024
वर्ष 2025 की ‘इसक’-सूची
ज्ञानरंजन ने अपने एक वक्तव्य में कहा है : ‘‘सूची कोई भी बनाए, कभी भी बनाए; सूचियाँ हमेशा ख़ारिज की जाती रहेंगी, वे विश्वसनीयता पैदा नहीं कर सकतीं—क्योंकि हर संपादक, आलोचक के जेब में एक सूची है।’’
16 दिसम्बर 2024
बेहतर गद्य लिखने के 30 ज़रूरी और जानदार नुस्ख़े
• जल्दी-जल्दी में लिखी गईं गोपनीय नोटबुक्स और तीव्र भावनाओं में टाइप किए गए पन्ने, जो ख़ुद की ख़ुशी के लिए हों। • हर चीज़ के लिए समर्पित रहो, हृदय खोलो, ध्यान देकर सुनो। • कोशिश करो कि कभी अपने
25 दिसम्बर 2024
नए लेखकों के लिए 30 ज़रूरी सुझाव
पहला सुझाव तो यह कि जीवन चलाने भर का रोज़गार खोजिए। आर्थिक असुविधा आपको हर दिन मारती रहेगी। धन के अभाव में आप दार्शनिक बन जाएँगे लेखक नहीं। दूसरा सुझाव कि अपने लेखक समाज में स्वीकृति का मोह छोड़
10 दिसम्बर 2024
रूढ़ियों में झुलसती मजबूर स्त्रियाँ
पश्चिमी राजस्थान का नाम सुनते ही लोगों के ज़ेहन में बग़ैर पानी रहने वाले लोगों के जीवन का बिंब बनता होगा, लेकिन पानी केवल एक समस्या नहीं है; उसके अलावा भी समस्याएँ हैं, जो पानी के चलते हाशिए पर धकेल
12 दिसम्बर 2024
नल-दमयंती कथा : परिचय, प्रेम और पहचान
“...और दमयंती ने राजा नल को परछाईं से पहचान लिया!” स्वयंवर से पूर्व दमयंती ने नल को देखा नहीं था, और स्वयंवर में भी जब देखा तो कई नल एक साथ दिखे। इनके बीच से असली नल को पहचान लेना संभव नहीं था।