धूप पर उद्धरण
धूप अपनी उज्ज्वलता और
पीलेपन में कल्पनाओं को दृश्य सौंपती है। इतना भर ही नहीं, धूप-छाँव को कवि-लेखक-मनुष्य जीवन-प्रसंगों का रूपक मानते हैं और इसलिए क़तई आश्चर्यजनक नहीं कि भाषा विभिन्न प्रयोजनों से इनका उपयोग करना जानती रही है।

तितलियाँ वे फूल ही हैं जो किसी धूप वाले दिन उड़ गए, जब प्रकृति स्वयं को सबसे अधिक आविष्कारशील और उपजाऊ महसूस कर रही थी।

जब सूरज उगता है तो केवल कुछ कलियाँ खिलती हैं, सारी नहीं। क्या इसके लिए सूरज को दोषी ठहराया जाएगा? कलियाँ स्वयं नहीं खिल सकतीं और इसके लिए सूरज की धूप का होना भी ज़रूरी है।