को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।
कबा गाँधी के एक-एक करके चार विवाह हुए थे। पहली दो पत्नियों से दो लड़कियाँ थीं। अंतिम पुतलीबाई से एक कन्या और तीन पुत्र हुए, जिनमें सबसे छोटा में हूँ। माताजी साध्वी स्त्री थीं, ऐसी छाप मेरे दिल पर पड़ी है। वह बहुत भावुक थीं। पूजा-पाठ किए बिना कभी भोजन
अपनी माताजी के बारे में कुछ कहते मुझे झिझक होती है। पिता को तो मैंने जाना ही नहीं। चार महीने का था, तभी सुनते हैं उनका देहांत हो गया। पिता की ओर के किन्हीं संबंधी होने का मुझे पता नहीं। घर की हालत नक़द या जाएदाद की तरफ़ से एक दम सिफ़र थी। इससे छुटपन
ताई उस विशाल सामंती खंडहर के एक कोने में हमारी ताई रहती थी—एक टूटे-फूटे कमरे में जिसकी लगातार मरहम-पट्टी होती थी और फिर भी जो मानो धरती की आकर्षण शक्ति से खिसका ही पड़ता हो। हमारे पुरखों ने दिल्ली त्याग कर यह मकान बनाया था, किसी ज़माने में इसके बाहर
रतलाम से बी० बी० एंड सी० आई० की गाड़ी पूर्ण वेग से रोज़ का रास्ता तय कर रही थी। यात्री हर स्टेशन पर उतरते और चढ़ते थे; परंतु मैं वर्षों की एक घटना का स्पष्ट चित्र देखने का प्रयत्न कर रहा था। सन् 1929 से ‘31 तक का साल हिंदुस्तान के क्रांतिकारी-आंदोलन
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