माँ पर दोहे
किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द
को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।
जमला ऐसी प्रीत कर, ज्यूँ बालक की माय।
मन लै राखै पालणौ, तन पाणी कूँ जाय॥
प्रीति तो ऐसी करो जैसी एक माता अपने बालक से करती है। वह जब पानी भरने जाती है तब अपने मन को तो झूले में पड़े बालक के पास ही छोड़ जाती है। ( उसका तन तो उसकी संतान से दूर रहता है पर मन उसी में लगा रहता है)।