माँ पर ब्लॉग

किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द

को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।

यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ

यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ

हिंदी के साहित्य-सेवियों को पृथिवी-पुत्र बनना चाहिए। वे सच्चे हृदय से यह कह और अनुभव कर सकें— माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः (अथर्ववेद) यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ। लेखकों में यह ज

वासुदेवशरण अग्रवाल
कल कुछ कल से अलग होगा

कल कुछ कल से अलग होगा

…क्या ज़रूरी है कि आलोकधन्वा की कविताओं पर बात करते हुए यह बताया जाए कि वह एक आंदोलन से निकले हुए कवि हैं? क्या ज़रूरी है कि यह बताया जाए कि उनकी कविताएँ एक विशेष वैचारिक समझ की कविताएँ हैं? क्या ज़रूरी

अविनाश मिश्र
बहुत धीरे चलती थी मेरी काठगोदाम

बहुत धीरे चलती थी मेरी काठगोदाम

काठगोदाम एक्सप्रेस। गोरखपुर से होते हुए हावड़ा जंक्शन से चल कर काठगोदाम को जाने वाली। जो कई वर्षों से प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आ रही है। धीरे-धीरे। हथिनी की तरह मथते हुए। हल्के पदचापों सहित। डेढ़-दो घंटे

अतुल तिवारी

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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