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जीवन पर ब्लॉग

जहाँ जीवन को स्वयं कविता

कहा गया हो, कविता में जीवन का उतरना अस्वाभाविक प्रतीति नहीं है। प्रस्तुत चयन में जीवन, जीवनानुभव, जीवन-संबंधी धारणाओं, जीवन की जय-पराजय आदि की अभिव्यक्ति देती कविताओं का संकलन किया गया है।

रात का कौन-सा पहर है

रात का कौन-सा पहर है

‘‘रात का कौन-सा पहर है? कौन-सा तारा डूबा है? क्या चंद्रमा त्रिकोण हो चुका है?’’ शायद रात हो गई है और तुम वृद्ध। न तुम्हारे सिरहाने कोई प्रकाश करने वाला है, न ही कोई तुमसे बात करना चाहता है। बरसात क

सौरभ पांडेय
मन एक डिस्ग्राफ़िया ग्रस्त बच्चे की हैंडराइटिंग है

मन एक डिस्ग्राफ़िया ग्रस्त बच्चे की हैंडराइटिंग है

चीज़ों को बुरी तरह टालने की बीमारी पनप गई है। एक पल को कुछ सोचती हूँ, अगले ही पल एक अदृश्य रबर से उसे जल्दबाज़ी से मिटाते हुए बीच में ही छोड़कर दूसरी कोई बात सोचने लगती हूँ। इन दिनों काम है कि लकड़ियों के

अंकिता शाम्भवी
जीवन का पैसेंजर सफ़र

जीवन का पैसेंजर सफ़र

यह नब्बे के दशक की बात है। 1994-95 के आस-पास की। हम राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ दोस्तों का एक समूह जैसा बन गया था। इस समूह को हमने ‘वितान’ नाम दिया था।

प्रभात
किट्टू की कहानी

किट्टू की कहानी

यह कहानी नहीं है। यह बस एक छोटा-सा इंटरव्यू है—कहानी-सा। इसका नायक किट्टू है। वह 35 साल का है। वह 31 का था, जब उसे यह पता चला था कि वह एच.आई.वी. पॉज़िटिव है। किट्टू की कहानी में कोई भारी संघर्ष नहीं

तोषी
सफ़र में होना क्या होता है?

सफ़र में होना क्या होता है?

उस दिन पहाड़ पर बादल तेज़ हवाओं के साथ बह रहे थे। वह बादलों की ओर देखकर शायद कोई प्रार्थना कर रही थी। मैंने कहा, “...सब आसमान की तरफ़ देखकर प्रार्थनाएँ क्यूँ करते हैं?” वह मुस्कुराते हुए बोली, “ताकि प

सौरभ अनंत
दो दीमकें लो, एक पंख दो

दो दीमकें लो, एक पंख दो

मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, इस कार्यक्रम के आयोजकों और नियामकों का जिन्होंने मुझे आपके रूबरू होने का, कुछ बातें कर पाने का मौक़ा दिया। मेरे लिए यह मौक़ा असाधारण तो नहीं, लेकिन कुछ दुर्लभ ज़रूर है। लि

योगेंद्र आहूजा
‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी’

‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी’

यह स्कूल के दौरान की बात है। हमारे घर में ‘राजस्थान पत्रिका’ अख़बार आया करता था। तब तक मैंने शे’र-ओ-शायरी के नाम पर सस्ती और ग्रीटिंग कार्ड में लिखी जाने वाली शाइरी ही पढ़ी थी। उन्हीं दिनों ‘राजस्थान प

देवेश पथ सारिया
कोशिश मत करो

कोशिश मत करो

बेहतर ज़िंदगी का नुस्ख़ा ज़्यादा की चिंता में नहीं है; फ़ालतू चीज़ों पर ध्यान देने में है, सिर्फ़ वास्तविक और उस समय के लिए ज़रूरी बात पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए। ~•~ ज़्यादा हमेशा बेहतर नहीं होता, वास

मार्क मैंसन
'रफ़्तगाँ में जहाँ के हम भी हैं'

'रफ़्तगाँ में जहाँ के हम भी हैं'

आदिम युग से ही कृति के साथ कर्ता भी हमेशा ही कौतूहल का विषय बना रहा है। जो हमसे भिन्नतर है, वह ऐसा क्यों है, इसकी जिज्ञासा आगे भी बनी ही रहेगी। इन्हीं जिज्ञासाओं में एक जिज्ञासा का लगभग शमन करते हुए क

प्रज्वल चतुर्वेदी
'लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है'

'लिखना ख़ुद को बचाए रखने की क़वायद भी है'

संतोष दीक्षित सुपरिचित कथाकार हैं। ‘बग़लगीर’ उनका नया उपन्यास है। इससे पहले ‘घर बदर’ शीर्षक से भी उनका एक उपन्यास चर्चित रहा। संतोष दीक्षित के पास एक महीन ह्यूमर है और एक तीक्ष्ण दृष्टि जो समय को बेधत

अंचित
भूलने की कोशिश करते हुए

भूलने की कोशिश करते हुए

मई 2021 हम किसी दरवाज़े के सामने खड़े हों और भूल जाएँ कि दरवाज़े खटखटाने पर ही उन्हें खोला जाता है। ठीक दूसरी तरफ़ तुम जैसा ही कोई दूसरा हो जिसने आवाज़ें पहचाना बंद कर दिया हो और जो उस चौहद्दी को ह

हरि कार्की
मैं अनुवाद कैसे करता हूँ

मैं अनुवाद कैसे करता हूँ

अनुवाद भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संगम का काम करता है। हिंदी में बहुत सारे अनुवाद हुए और हो रहे हैं। लेकिन एक समय हिंदी में एक ऐसी पूरी पीढ़ी पनप रही थी जो अँग्रेज़ी अनुवादों के माध्यम से संसार भर के

अरविंद कुमार

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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