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खेत पर उद्धरण

एक निरी कामकाजी दृष्टि के द्वारा एक कामकाजी व्यक्ति को खेत, कृषि-विज्ञान और नीतिशास्त्र की किताबों के पन्नों की तरह दिखाई देते हैं, खेतों की हरियाली किस तरह से गाँव के कोने तक फैल गई है—उसे भावुक ही देखता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

गन्ना चूसना हो तो अपने खेत को छोड़कर बग़ल के खेत से तोड़ता है और दूसरों से कहता है कि देखो, मेरे खेत में कितनी चोरी हो रही है। वह ग़लत नहीं कहता है क्योंकि जिस तरह उसके खेत की बग़ल में किसी दूसरे का खेत है, उसी तरह और के खेत की बग़ल में उसका खेत है और दूसरे की संपत्ति के लिए सभी के मन में सहज प्रेम की भावना है।

श्रीलाल शुक्ल

भक्ति कविता का संसार से जो सम्बन्ध है, मुझे एक किसान की टिनेसिटी (तपस्या) मालूम होती हैं कि तकलीफ़ होने के बावजूद खेत से जुड़ा है।

नामवर सिंह

हिंदुस्तान में खेती के लिए बहुतेरे कुदरती ख़तरे हैं।

महात्मा गांधी

खेती की भाँति ही, सब उद्योगों के विषय में उद्यम की वर्तमान दृष्टि ही भूल से भरी हुई है।

महात्मा गांधी

खेती हिंदुस्तान का प्राणरूप धंधा है।

महात्मा गांधी

खेती की तरक्की के लिए गोचर-भूमि की सुविधा भी आवश्यक है।

महात्मा गांधी

छप्पर छाने के लिए चार मनुष्य चाहिए। खेत निराने के लिए छह मनुष्य चाहिए। खाट बुनने के लिए तीन मनुष्य चाहिए। राह चलने के लिए दो मनुष्य चाहिए।

घाघ