विलियम स्टैनले मर्विन के उद्धरण
मुझे लगता है हमेशा दो पहलू होते है। और दो में से एक पहलू हमेशा कहे के परे चला जाता है। एक अकेला विलक्षण। जो आप हैं; जो आप किसी से कह नहीं सकते। और दूसरी तरफ़ वह जो आप कह सकते हैं। उन चीज़ों के बारे में हम कैसे जानते हैं जिनके बारे में हम बातें करते हैं। हम शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। शब्द कभी कुछ नहीं कहते, लेकिन हमारे पास कहने के लिए सिर्फ़ शब्द हैं।
कहो कि तुम किसे विलुप्त होते हुए देखते हो और मैं कहूँगा कि तुम कौन हो।
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मेरे पास कोई तरीका नहीं है यह बताने का, कि मुझे किसकी कमी खलती है। मैं ही हूँ जो उस कमी को महसूस करता है।
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बयाँ उसका जो बयाँ के परे है, कविता सही मायनों में उसे कहना है जो कहा नहीं जा सकता। इसीलिए ऐसे क्षणों में लोग कविता की तरफ़ मुड़ते हैं। वे नहीं जानते वे इसे कैसे कहेंगे लेकिन उनकी आत्मा का एक हिस्सा महसूस करता है कि शायद कविता उसे कहना संभव कर सकेगी। शायद वह इसे कहेगी भी नहीं लेकिन वह उस कहे के बहुत नज़दीक आएगी जिसे और कुछ भी या कोई भी सम्भव नहीं कर सकता।
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जो कहा नहीं जा सकता हम उसे कहने की कोशिश शुरू करते हैं। जब अख़बार के पहले पन्ने पर आप इराक़ की उस औरत की तस्वीर देखते हैं जिसके शौहर की धज्जियाँ बम से उड़ चुकी हैं, आप उसे वहाँ देख रहे होते हैं, उसका बड़ा-सा खुला हुआ मुँह, शोक और दर्द का तूफ़ान-यहाँ से भाषा की शुरुआत होती है।
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जिस दिन इस दुनिया का आख़िरी दिन होगा, उस दिन मैं एक पेड़ लगाना चाहूँगा।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere