सुरेंद्र वर्मा के उद्धरण
दरिद्रता अभिशाप है और वरदान भी। वह व्यक्ति रूप में एक विशिष्ट समय तक तुम्हारा परिसंस्कार करती है—पर यह अवधि दीर्घ नहीं होनी चाहिए।
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स्वीकार करना बहुत पीड़ादायक होता है, पर जीने के लिए करना होता है।
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सजग पर्यवेक्षण, सटीक अभिव्यक्ति के सुचिंतित प्रकार, और कगार तोड़ने को व्याकुल कल्पना जिन कवियों के पास नहीं, उन्होंने उपमाओं को रंगहीन, बासी और थोथा बना दिया है।
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जिनके पास साधन होते हैं, उनके पास दृष्टि नहीं होती, जिनके पास दृष्टि होती है—केवल वही होती है, और शून्य होता है।
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फल की चिंता के साथ किया गया कर्म, कर्म-अवधारणा का अपमान समझा जाना चाहिए।
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कलात्मक महत्वाकांक्षा घातक होती है—प्रियजनों को संतप्त करती है।
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अपनी सीमाओं के हाशिए झकझोरने का यही एक उपाय है—हर जड़ और चेतन के साथ संयुक्त होने का प्रयास।
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जिन प्राणियों की जीवन-शैली स्निग्ध और धवल होती है, उन्हीं के जीवन में कविता होती है। हमारा जीवन शुष्क और मलिन है। हम उस कोटि को छू भी नहीं सकते।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere