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ऋतुराज

1940 | भरतपुर, राजस्थान

समादृत कवि। प्रगतिशील लेखक संघ से संबद्ध।

समादृत कवि। प्रगतिशील लेखक संघ से संबद्ध।

ऋतुराज के उद्धरण

विचार और कलात्मकता के संतुलन पर ही आधुनिक कवि की सफलता या असफलता, शक्ति या दुर्बलता निर्भर करती है।

सारी संभावनाएँ स्थापित होने पर ख़त्म हो जाती हैं।

जो लोग कविता से निरी कलात्मकता की अपेक्षा करते हैं, वे कविता के वस्तु-सत्य को गौण रखना चाहते हैं।

मुक्ति के बिना समानता प्राप्त नहीं की जा सकती और समानता के अभाव में मुक्ति संभव नहीं है।

कवि अपनी विचारधारा को बिना कलात्मक रूप दिए अवाम पर कोई भरपूर प्रभाव नहीं डाल सकता।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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