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चतुर्भुजदास

1518 - 1585 | जबलपुर, मध्य प्रदेश

कृष्णभक्त कवि। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। कुंभनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य।

कृष्णभक्त कवि। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। कुंभनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य।

चतुर्भुजदास के दोहे

सकल तू बल-छल छाँड़ि, मुग्ध सेवै मुरलीधर।

मिटहिं सहा भव-द्वंद फंद, कटि रटि राधावर॥

वत्सलता अरु अभय सदा, आरत-अघ-सोखन।

दीनबंधु सुखसिंधु सकल, सुख दै दुख-मोचन॥

अखिल लोक के जीव हैं, जु तिन को जीवन जल।

सकल सिद्धि अरु रिद्धि जानि, जीवन जु भक्ति-फल॥

प्रगट वंदन रसना जु प्रगट, अरु प्रगट नाम रढ़ि।

जीभ निसेनी मुक्ति तिहि बल, आरोहि मृढ़ चढ़ि॥

और धर्म अरु कर्म करत, भव-भटक मिटिहै।

जुगम-महाशृंखला जु, हरि-भजनन कटिहै॥

‘चत्रभुज' मुरलीधर-कृपा परै पार, हरि-भजन-बल।

छीपा, चमार, ताँती, तुरक, जगमगात जाने सकल॥

ऊँच नीच पद चहत ताहि, कामिक कर्म करिहै।

कबहुँ होइ सुरराज कबहुँ, तिर्यक-तनु धरिहै॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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