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यूनिवर्सिटी का प्रेम और पापा का स्कूटर

पहली कड़ी से आगे...

उन दिनों इलाहबाद में प्रेम की जगहें कम होती थीं। ऐसी सार्वजनिक जगहों की कमी थी, जहाँ पर प्रेमी युगल थोड़ा वक़्त बिता सकें या साथ बैठ सकें। ग्रेजुएशन में मुझे पहला प्रेम हुआ। वह हिंदी विभाग में एक एमए की लड़की थी। उस समय राह चलते प्रेम हो जाया करता था। हॉस्टल के सामने बैठे हुए अगर रिक्शा पे जाती हुई कोई लड़की देखकर बस मुस्कुरा दे तो महीनों उसी समय उसी जगह खड़े रहते थे कि वो मुस्कान फिर से दिख जाए। क्लास में कोई लड़की किसी दिन बात कर ले, कुछ पूछ ले तो रोज़ समय से पहले क्लास पहुँचते थे और सबसे बाद में निकलते थे, भले ही वह न क्लास आए या न आए। दुबारा कभी बात न हो, फिर भी महीनों तक यह उम्मीद बनी रहती थी कि एक दिन फिर बात होगी। 

आज सोचता हूँ तो यह एक तरह का अपराध है, जिसे स्टॉकिंग कहते हैं, पर उस समय यह एक तरह की तपस्या थी। चाहे बात हो या न हो, एक बार नज़र मिली, उसी नज़र से संवाद हुआ और हो गया प्रेम। इलाहाबाद के लड़कों को ऐसे प्रेम ख़ूब हुआ करते थे। कई तो ऐसे भी थे जो कभी बता ही नहीं सके कि उन्हें कितनी बार प्रेम हुआ। 

मैं जिस स्कूल से पढ़ा, उस स्कूल के किसी लड़के ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाख़िला नहीं लिया। लगभग सब बाहर चले गए। जो रह गए, वे पिता का व्यापार या काम सँभालने लगे। मुझे एक ज़िद थी—जितनी बार मैं यूनिवर्सिटी के सामने से गुज़रता था, सोचता था कि एक दिन यहाँ पढ़ूँगा। एक तो मुझे गोथिक शिल्प में बना यूनिवर्सिटी का स्ट्रक्चर बहुत पसंद था और दूसरा मुझे दर्शन से बहुत प्रेम था। 

ख़ैर, वो लड़की हिंदी पढ़ रही थी। उसने मुझे कुछ किताबें दीं। मिलने की जगह कम थी तो हम अल्फ़्रेड पार्क, आनंद भवन, हाथी पार्क और कभी-कभी किसी छोटे से रेस्टोरेंट में कुछ मिनटों के लिए मिलते थे। छूने की हिम्मत नहीं होती थी। वह जानबूझकर मेरा हाथ पकड़ लेती तो झट से छुड़ा लेता। 

बहुत सोचने के बाद मैंने जुगत लगाई कि पापा के स्कूटर पर पीछे बैठाकर घूमते हुए बात की जाए, और वह स्कूटर हमारे लिए सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गया। जिस दिन मिलना होता, स्कूटर में तेल फुल करवाकर सोराँव की तरफ़ निकल जाते। ख़ूब बातें करते, रुककर गन्ने का रस पीते और सिंघाड़ा खाते। बड़ा मन था कि किसी दिन उसको लेकर सिनेमा जाऊँ। लेकिन यह हो न सका। मैं यूनिवर्सिटी में चर्चित छात्रों में से एक था और डर लगता था कि कहीं यह बात खुल जाए तो सब मेरा मख़ौल न उड़ाएँ। 

बहरहाल, बहुत दिन तक वो प्रेम चल न पाया। मुझे एक दूसरी लड़की से प्रेम हुआ और वो पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली चली गई। सुना है प्रोफ़ेसर है—एक यूनिवर्सिटी में।

उम्मीद है, उसकी यूनिवर्सिटी में प्रेम करने की जगहें कम नहीं होंगी।

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अगली बेला में जारी...

 

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