Font by Mehr Nastaliq Web

एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में...

हान कांग (जन्म : 1970) दक्षिण कोरियाई लेखिका हैं। वर्ष 2024 में, वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली दक्षिण कोरियाई लेखक और पहली एशियाई लेखिका बनीं। नोबेल से पूर्व उन्हें उनके उपन्यास द वेजिटेरियन के लिए जाना जाता है, इस कृति को 2016 में मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार मिला था। हान कांग के साहित्य से गुज़रते हुए आप ख़ुद को आघात, हिंसा, मानव शरीर और अस्तित्ववादी पीड़ा जैसे विषयों से जुड़ी ज़मीन पर खड़ा पाएँगे। वह इंसानी प्रवृत्तियों, भावनाओं और जीवन के अँधेरे पहलुओं की गहराई से पड़ताल करने के लिए जानी जाती हैं। यहाँ प्रस्तुत है, उनकी पाँच कहानियों का हिंदी-अनुवाद। ‘हिन्दवी’ के लिए यह अनुवाद बेबी शॉ ने किया है।


स्तन का दूध

एक बाईस वर्षीय स्त्री घर में अकेली बिस्तर पर पड़ी है। यह शनिवार की सुबह है, प्रात: तुषार अभी भी घास पर चिपकी हुई है, उसका पच्चीस वर्षीय पति कुदाल लेकर पहाड़ पर गया है, कल जन्मे बच्चे को दफ़नाने के लिए। स्त्री की सूजी हुई आँखें ठीक से नहीं खुल रही। उसके शरीर के विभिन्न जोड़ दर्द से भरे हुए हैं। सूजी हुई उँगलियाँ चुभ रही हैं। और तभी, पहली बार, उसे अपनी छाती में उष्णता महसूस होती है। वह तुरंत उठकर बैठ जाती है। अनाड़ी की तरह अपने स्तन को दबाती है। पहले पानी जैसा, फिर पीला-सा ट्रिकल, फिर निकल आता है चिकना सफ़ेद दूध।

~

वह

मैं सोचता हूँ कि वह दूध पीने के लिए ही जीवित रहती होगी।

मैं जिद्दी साँसों के बारे में सोचती हूँ, निप्पल पर बुदबुदाते छोटे होंठों के बारे में भी।

मैं उसके दूध छुड़ाए जाने और फिर दाल-चावल खाने, बड़े होने, एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में सोचती हूँ।

मैं—हर बार पीछे हट जाती मौत के बारे में सोचती हूँ, और वह दृढ़ता से आगे बढ़ती जाएगी पीठ पर मृत्यु को लेकर।

मत मरो! भगवान के लिए, मत मरो!

उन शब्दों के द्वारा उसके शरीर में एक ताबीज़ जैसा बुना गया।

और मैं सोचता हूँ कि वह मेरी जगह यहाँ आई है।

इस उत्सुकता भरे परिचित शहर को, जिसकी मृत्यु और जीवन उसकी अपने जैसी है।

~

सफ़ेद कपड़ा

नवजात शिशु के चारों तरफ़ बर्फ़ की तरह सफ़ेद कपड़ा लपेटा जाता है। गर्भ में से निकलने के बाद, नर्स शरीर को सही तरह से कसकर बाँधती है, ताकि असीमता में अचानक हुए प्रक्षेपण के आघात को कम किया जा सके।

वह व्यक्ति जो अभी साँस लेना शुरू करता है, जिसके फेफड़ों में पहली बार हवा भरी है। वह व्यक्ति जो नहीं जानता कि वह कौन है, कहाँ है और यह क्या शुरू हुआ है अभी। सभी युवा प्राणी में सबसे असहाय, एक नवजात चूजे से भी अधिक असहाय।

ख़ून की कमी से पीली पड़ चुकी स्त्री, रोते हुए बच्चे को देखती है। घबराकर वह उसे अपनी बाँहों में भर लेती है। इस रोने को बंद कैसे किया जाएगा, उसे पता नहीं हैं। अभी कुछ पल पहले तक कौन ऐसी भयानक पीड़ा में थी। अप्रत्याशित ही किसी कारण से चुप हो जाता है बच्चा। ऐसा किसी अनजान गंध की वजह से होता होगा। या फिर दोनों अभी भी जुड़े हुए हैं। और वह देख रहा होगा एक काली आँखों वाली स्त्री और उसके स्वर की तरफ़। 

पता नहीं, ऐसा कौन-सा मुहूर्त था, ये दोनों जुड़ हुए हैं। गंध से भरे हुए, शांत पल में; रक्त-गंध में। और तब दोनों शरीर के बीच जो लेप्टी हुआ है, वह है सफ़ेद कपड़े का हिस्सा।

~

अँधेरे में कुछ वस्तुएँ

अँधेरे में कुछ वस्तुएँ सफ़ेद दिखाई देती हैं।  

जब अँधेरे में हल्की-सी रोशनी भी आ जाती है, तो वे चीज़ें भी जो अन्यथा सफ़ेद नहीं होतीं, धुँधली पीली चमक के साथ चमकने लगती हैं।

रात में, मैं लिविंग रूम के कोने में सोफ़ा-बेड में बिस्तर बिछाती हूँ और उस फीकी रोशनी में लेट जाती हूँ। सोने की कोशिश करते वक़्त, मैं इंतज़ार करती हूँ, अनुभव करती हूँ--अपने भावों के साथ समय बिताने का। खिड़की के बाहर लगे हुए पेड़ सफ़ेद प्लास्टर की दीवाल पर छाया डालते हैं। मैं उस व्यक्ति के बारे में सोचती रहती हूँ, जो इस शहर जैसा दिखता है, उसी चेहरे की बनावट पर विचार करती हूँ। इसके चेहरे और भावों के एक होने का इंतज़ार करती हूँ, ताकि मैं अभिव्यक्ति को पढ़ सकूँ।

~

पंख

वह इस शहर का बाहरी इलाक़ा था, जहाँ उसने एक तितली देखी थी : एक अकेली सफ़ेद तितली, पंखों को झपकाती हुई : नवंबर की एक सुबह में। तब गर्मियों के बाद कोई तितली नहीं दिखती थी। ये कहाँ छिपी हुई थी? पिछले हफ़्ते हवा का तापमान बहुत गिर गया था और शायद इसके पंख ठंड से जम जाने के कारण, उसका सफ़ेद रंग उड़ गया था, और कुछ हिस्से ट्रांसपेरेंट हो गए थे। और इतने स्वच्छ कि इस काली धरती के प्रतिबिंब के साथ झिलमिलाते रहें। बस अब थोड़ा समय चाहिए, बाक़ी सफ़ेद रंग भी उसके पंखों को पूरी तरह से छोड़कर चला जाएगा। और तब वह कुछ और हो जाएगी, तब पंख (होंगे) नहीं होंगे, और यह तितली तब ऐसा कुछ हो जाएगी कि मानो वह तितली नहीं है। 

~~~

प्रस्तुत कथाएँ हान कांग की कथा-कृति ‘द वाइट बुक’—प्रकाशक : Hogarth (London/New York), संस्करण : 2017—से साभार हैं। इस पुस्तक का कोरियाई भाषा से अँग्रेज़ी अनुवाद Deborah Smith ने किया है।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

22 फरवरी 2025

प्लेटो ने कहा है : संघर्ष के बिना कुछ भी सुंदर नहीं है

22 फरवरी 2025

प्लेटो ने कहा है : संघर्ष के बिना कुछ भी सुंदर नहीं है

• दयालु बनो, क्योंकि तुम जिससे भी मिलोगे वह एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है। • केवल मरे हुए लोगों ने ही युद्ध का अंत देखा है। • शासन करने से इनकार करने का सबसे बड़ा दंड अपने से कमतर किसी व्यक्ति द्वार

23 फरवरी 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘जो पेड़ सड़कों पर हैं, वे कभी भी कट सकते हैं’

23 फरवरी 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘जो पेड़ सड़कों पर हैं, वे कभी भी कट सकते हैं’

• मैंने Meta AI से पूछा : भगदड़ क्या है? मुझे उत्तर प्राप्त हुआ :  भगदड़ एक ऐसी स्थिति है, जब एक समूह में लोग अचानक और अनियंत्रित तरीक़े से भागने लगते हैं—अक्सर किसी ख़तरे या डर के कारण। यह अक्सर

07 फरवरी 2025

कभी न लौटने के लिए जाना

07 फरवरी 2025

कभी न लौटने के लिए जाना

6 अगस्त 2017 की शाम थी। मैं एमए में एडमिशन लेने के बाद एक शाम आपसे मिलने आपके घर पहुँचा था। अस्ल में मैं और पापा, एक ममेरे भाई (सुधाकर उपाध्याय) से मिलने के लिए वहाँ गए थे जो उन दिनों आपके साथ रहा कर

25 फरवरी 2025

आजकल पत्नी को निहार रहा हूँ

25 फरवरी 2025

आजकल पत्नी को निहार रहा हूँ

आजकल पत्नी को निहार रहा हूँ, सच पूछिए तो अपनी किस्मत सँवार रहा हूँ। हुआ यूँ कि रिटायरमेंट के कुछ माह पहले से ही सहकर्मीगण आकर पूछने लगे—“रिटायरमेंट के बाद क्या प्लान है चतुर्वेदी जी?” “अभी तक

31 जनवरी 2025

शैलेंद्र और साहिर : जाने क्या बात थी...

31 जनवरी 2025

शैलेंद्र और साहिर : जाने क्या बात थी...

शैलेंद्र और साहिर लुधियानवी—हिंदी सिनेमा के दो ऐसे नाम, जिनकी लेखनी ने फ़िल्मी गीतों को साहित्यिक ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उनकी क़लम से निकले अल्फ़ाज़ सिर्फ़ गीत नहीं, बल्कि ज़िंदगी का फ़लसफ़ा और समाज क

बेला लेटेस्ट