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अमृतलाल नागर

1916 - 1990 | आगरा, उत्तर प्रदेश

समादृत उपन्यासकार-कथाकार। पटकथा-लेखन में भी योगदान। साहित्य अकादेमी-पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत उपन्यासकार-कथाकार। पटकथा-लेखन में भी योगदान। साहित्य अकादेमी-पुरस्कार से सम्मानित।

अमृतलाल नागर के उद्धरण

जड़-चेतनमय, विष अमृतमय, अंधकार-प्रकाशमय जीवन में न्याय के लिए कर्म करना ही गति है। मुझे जीना ही होगा, कर्म करना ही होगा। यह बंधन ही मेरी मुक्ति भी है। इस अंधकार में ही प्रकाश पाने के लिए मुझे भी जीना है।

सत्य, आस्था और लगन जीवन-सिद्धि के मूल हैं।

कला जीवन का रस है।

उदारता और स्वाधीनता मिल कर ही जीवनतत्त्व है।

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