
कुछ भी इतना मधुर नहीं होना चाहिए कि सुनते ही नींद आ जाए और इतना प्रेरक भी नहीं कि समझने पर वैराग्य आ जाए।

कुछ भी इतना मधुर नहीं होना चाहिए कि सुनते ही नींद आ जाए और इतना प्रेरक भी नहीं कि समझने पर वैराग्य आ जाए।

महाभारत को जिस प्रकार एक ही समय में कर्म एवं वैराग्य का काव्य कहा जाता है, उसी प्रकार कालिदास को भी एक ही समय में सौंदर्य-भोग एवं भोगविरति का कवि जा सकता है।

यदि हम वैराग्यवश पथ को त्याग दें तो बार-बार विपथ में चक्कर काटते फिरेंगे।
-
संबंधित विषय : रवींद्रनाथ ठाकुर

वैराग्य की अति की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी भोगासक्ति।