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ग़रीबी पर दोहे

ग़रीबी बुनियादी आवश्यकताओं

के अभाव की स्थिति है। कविता जब भी मानव मात्र के पक्ष में खड़ी होगी, उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ और आकांक्षाएँ हमेशा कविता के केंद्र में होंगी। प्रस्तुत है ग़रीब और ग़रीबी पर संवाद रचती कविताओं का यह चयन।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।

धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात॥

रहीम

सचमुच सदा ग़रीब ही

ढोता ज़िंदा लाश।

उसके ही शव देखकर

गंगा हुई उदास॥

जीवन सिंह

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