ललितमोहिनी देव के दोहे
निंदा करै सो धोबी कहिए, अस्तुति करै सो भाट।
अस्तुति निंदा से अलग, सोई भक्त निराट॥
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साधु-साधु सब एक है, ठाकुर-ठाकुर एक।
संतन सों जो हित करै, सोई जान विवेक॥
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वृंदाबन में परि रहौ, देखि बिहारी-रूप।
तासु बराबर को करैं, सब भूपन कौ भूप॥
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कहा त्रिलोकी जस किये, कहा त्रिलोकी दान?
कहा त्रिलोकी बस किए, करी न भक्ति निदान॥
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ना काहू सों रूसनो, ना काहू सों रंग।
ललितमोहिनीदास की, अद्भुत केलि अभंग॥
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नैन बिहारी रूप निरखि, रसन बिहारी नाम।
श्रवन बिहारी सुजस सुनि, निसदिन आठों जाम॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere