वृंदावन पर दोहे
वृंदावन एक प्रमुख धार्मिक
और ऐतिहासिक नगर है, जिसका संबंध कृष्ण से है। इसे ब्रज का हृदय-स्थल कहा जाता है। कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंद अपने कुटुंबियों संग वृंदावन में ही आश्रय लेने पहुँचे थे और यही स्थल कृष्ण की बाल-लीलाओं का साक्षी बना था। कालिदास ने भी इंदुमती-स्वयं के प्रसंग में वृंदावन का उल्लेख किया है।
कदम-कुंज है हौं कबै, श्रीवृंदावन माहिं।
'ललितकिसोरी' लाड़िले, बिहरैंगे तिहिं छाहिं॥
वृंदाबन में परि रहौ, देखि बिहारी-रूप।
तासु बराबर को करैं, सब भूपन कौ भूप॥
कहि न सकत रसना कछुक, प्रेम-स्वाद आनंद।
को जानै ‘ध्रुव' प्रेम-रस, बिन बृंदावन-चंद॥
ललित बेलि, कलिका, सुमन, तिनहीं ललित सुवास।
पिक, कोकिल, शुक, ललित सुर, गावन जुगुल-बिलास॥
ललित हरित अवनी सुखद, ललित लता नवकुंज।
ललित विहंगम बोलहीं, ललित मधुर अलिगुंज॥