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भूपति

रीतिकाल के नीतिकवि। कविता में दृष्टांत और उदाहरण अलंकारों का कलापूर्ण और प्रभावोत्पादक प्रयोग।

रीतिकाल के नीतिकवि। कविता में दृष्टांत और उदाहरण अलंकारों का कलापूर्ण और प्रभावोत्पादक प्रयोग।

भूपति की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 56

आदर करि राखो कितो, करि है औगुन संठ।

हर राखो विष कंठ में, कियो नील वै कंठ॥

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संगति दोष पंडितनि, रह खलनि के संग।

बिषधर विष ससि ईस में, अपने-अपने रंग॥

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सर सर जद्यपि मंजु हैं, फूले कंज रसाल।

बिन मानस मानस मुदित, कहुँ नहिं करत मराल॥

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वह रसाल है औरई, जौन सुखद हिय माँह।

अरे पथिक भटकत कहा, लखि की छाँह॥

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हरि तिय देखे ही बने, अचिरिजु अंग गुन गेह।

कटि कहिबे की जानिये, ज्यों गनिका को नेह॥

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