बैरीसाल के दोहे
लई सुधा सब छीनि विधि, तुव मुख रचिवे काज।
सो अब याही सोच सखि, छीन होत दुजराज॥
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लसति रोमावलि कुचन बिच, नीले पट की छाँह।
जनु सरिता जुग चंद्र बिच, निश अंधियारी माँह॥
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विधु सम तुव मुख लखि भई, पहिचानन की संग।
विधि याही ते जनु कियो, सखि मयंक में पंग॥
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यह सोभा त्रबलीन की, ऐसी परत निहारि।
कटि नापत विधि की मनौ, गड़ी आँगुरी चारि॥
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निरमल कीबे को मनहिं, करत स्याम रंग ज़ोर।
अंजन आँजत दृगन ज्यौं, निरमल ताको कोर॥
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अलि अब हम कीजै कहा, कासों कहैं हवाल।
उत धनु करषत मदन इत, करषत मनहिं गोपाल॥
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निज नेवास को छोड़ि के, लागी पलकन लीक।
वाही अकस लगी लला, अधरा अंजन लीक॥
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सुनि तुव मुख निकसे बचन, मधुर सुधा को सोत।
जर्यो समर हर कोप झर, फेरि डहडहो होत॥
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करत कोकनद महि रद, तुव पद हद सुकुमार।
भये अरुन अति दबि मनो, पायजेब के भार॥
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चलि देखौ ब्रजनाथ जू, झूठी भाखत मैं न।
कढ़त सलोने बदन ते, मधुर सुधा से बैन॥
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ऐसे ही इन कमल कुल, जीति लियो निज रंग।
कहा करन चाहत चरन, लहि अब जावक संग॥
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कमल चढ़ावत काम है, हर ऊपर यहि चोप।
है प्रसन्न देहैं सुवरु, रति संजोग तजि कोप॥
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दाहत आगि वियोग की, वाहि आठहू जाम।
तुम्हैं अछत अदभुत सु यह, सुनौ सरस घनश्याम॥
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जैसी कछु विधि नै दई, बड़ी विरह की झार।
तैसे ई असुवाँ दये, तासु बुझावनहार॥
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तुम ताके मन तासु मन, बसत विरह की ज्वाल।
तुम्हें न बाधत नेक हू, बड़े सयाने लाल॥
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कर छुटाइ भजि दुरि गई, कनक पूतरिन माहिं।
खरे लाल बिलखत खरे, नेकु पिछानत नाहिं॥
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जो नहिं हाँ ते विकल है, भगि जातो अलिजाल।
तौ तुव हिय में जानियत, क्यौं चंपा की माल॥
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उयो विषद राका शशी, छायो भुवन प्रकास।
तऊँ कुहू रजनी कियो, वाके नैननि वास॥
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नहिं कुरंग नहिं ससक यह, नहिं कलंक नहिं पंक।
बीस बिसे बिरहा दही, गड़ी दीठि ससि अंक॥
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सखि केतो तुव रूप को, पारावार अपार।
जाहि चपल अति ललन मन, पैरि न पावत पार॥
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सेत कमल कर लेत ही, अरुन कमल छवि देत।
नील कमल निरखत भयो, हँसत सेत को सेत॥
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विरह तई लखि निरदई, मारत नहीं सकात।
मार नाम विधि ने कियो, यहै जानि जिय बात॥
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करत नेह हरि सों भटू, क्यों नहिं कियो बिचार।
चहत बचायो बसन अब, बौरी बाँधि अंगार॥
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लसत लाल डोरे रु सित, चखन पूतरी स्याम।
प्यारी तेरे दृगन में, कियो तिहूँ गुण धाम॥
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अलि ये उड़गन अगिनि कन,अंक धूम अवधारि।
मानहु आवत दहन ससि, लै निज संग दवारि॥
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तोष लहत नहिं एक सों, जात और के धाम।
कियो विधातै रावरे, याते नायक नाम॥
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निज प्रतिबिंबन में दुरी, मुकुर धाम सुखदानि।
लई तुरत ही भावते, तन सुवास पहिचान॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere