बाल अली के दोहे
दंपति प्रेम पयोधि में, जो दृग देत सुभाय।
सुधि बुधि सब बिसरत तहाँ, रहे सु विस्मै पाय॥
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हिलि मिलि झूलत डोल दोउ, अलि हिय हरने लाल।
लसी युगल गल एक ही, सुसम कुसुम मय माल॥
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नील पीत छबि सो परे, पहिरे बसन सुरंग।
जनु दंपति यह रूप ह्वै, परसत प्यारे अंग॥
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नेह सरोवर कुँवर दोउ, रहे फूलि नव कंज।
अनुरागी अलि अलिन के, लपटे लोचन मंजु॥
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यद्यपि दंपति परसपर, सदा प्रेम रस लीन।
रहे अपन पौ हारि कै, पै पिय अधिक अधीन॥
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पिय कुंडल तिय अलक सों, कर-कंकण सौ माल।
मन सो मन दृग दृगन सों, रहे उरझि दोउ लाल॥
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गौर श्याम बिचरत पये, मनहुँ किहैं इक देह।
सौहैं मन मोहैं ललन, कोहैं हरतिय नेह॥
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कबहुँक सुंदर डोल महि, राजत युगल किशोर।
अद्भुत छवि बाढ़ी तहाँ, ठाढ़ी अलि चहुँ ओर॥
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सुंदर गलबहियाँ दिये, लालन लसे अनूप।
तन मन प्राण कपोल दृग, मिलत भये इक रूप॥
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जंघ युगल तव जनक जे, अकि ग्रह उत्सव रंभ।
पिया प्रेम कै भवन कै, किधौ सुंदर बरखंभ॥
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लस्यो श्याम तव तन कस्यो, कंचुकि बसन बनाय।
राखे हैं मनो प्राण पति, हिये लगाय दुराय॥
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नाभि गंभीर कि भ्रमर यह, नेह निरजगा माहिं।
ता महँ पिय मन मगन ह्वै, नेकहु निकर्यौ नाहिं॥
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है अलि सुंदरि उरज युग, रहे तव उरजु प्रकाश।
नवल नेह के फंद द्वै, अतिपिय सुख की रासि॥
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कुसुम क्रीट कवरी गुही, रंग कुम-कुम मुख कंज।
अंजन अंजित युगल दृग, नासा बेसरि मंजु॥
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एक चित्त कोउ एक बय, एक नैह इक प्राण।
एक रूप इक वेश ह्वै, क्रीड़त कुँवर सुजान॥
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रघुवर मन रंजन निपुण, गंजन मद रस मैन।
कंजन पर खंजन किधौं, अंजन अंजित नैन॥
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जनक नंदनी नाम नित, हित हिय भरि जो लेत।
ताके हाथ अधीन ह्वै, लाल अपन पौ देत॥
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श्रुति कुंडल भल दशन दुति, अरुण अधर छवि ऐन।
हित सौ हँसि बोलहि पिय, हिय हरने मृदु बैन॥
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कुसुमित भूषण नगन युत, भुज वल्लरी सुवास।
लालन बीच तमाल के, कंध पर कियो निवास॥
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सिय तेरे गोरे गरे, पोति जोति छवि झाय।
मनहुँ रँगीले लाल की, भुजा रही लपटाय॥
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श्याम बरण अंबरन को, सुकृत सराहत लाल।
छराहरा अंग राग भो, चाहत नैन बिसाल॥
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सुख निद्रा पौढ़े अरघ, नारी स्वर से होय।
प्रेम समाधि लगी मनौ, सखि जानत सुख सोय॥
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गुरु नितंब कटि सिंह मिलि, पट गौतमी प्रवाह।
किंकिण मुनि गण अमर निज, मन अन्हवावत नाह॥
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चकत तरौना भौंह युग, अलिबलि दृग मृग जोर।
रदन अमी कण बदन तव, ससिरथ पीय चकोर॥
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नील पीत नव बसन छवि, हिलि मिलि भय यक रंग।
हरे हरे अली कहत हैं, यह धरि सिय पिय अंग॥
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हार पदिक कुंडल तिलक, कबहुँ अंक तन तीय।
छिन-छिन बिनहि टरे रहत, आय सँवारत पीय॥
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सब अपने भूषण बसन, अपने ही कर लाल।
लाड़िलि अंग बनाइ छवि, निरखहिं नैन बिसाल॥
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वारि अपन पौ दृगन तैं, डरि अलि कछू कहून।
रहत उतारत हीय महिं, पियहू राई लून॥
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तो वक जावक रंग छवि, निरखति अलि अनुराग।
मनु मन भावन प्रेम रस, पावत पायन लाग॥
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कबहुँ निहारत नृत्य सुख, ललन आइ तिहि गेह।
जहँ चातुर आतुर अली, गावत पिय नव नेह॥
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अरुण बरण तव चरण नख, हैं कि तरुणि शिर मौर।
अनुरागी दृग लाल के, बसे आय इहि ठौर॥
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नथ मुक्ता झलकत पगे, नासा स्वास सुबास।
उरझि पर्यौ यह पीय मन, मनहुँ प्रेम के पास॥
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सर्व सँवारत बिवस ह्वै, तेरी छविहि निहारि।
बारि-बारि पीवत रहत, बारि-बारि पिय बारि॥
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सब दिशि कंचनमय करत, तव तन जोति अनूप।
मनु झरिझरि अंगन परै, अंग रमावै रूप॥
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तू सिय पिय के रंग रँगी, रँगे पीय तव रंग।
रहे अली इक रूप ह्वै, ज्यों जल मिले तरंग॥
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रूप भाग्य गुण भार नव, यौवन भारहि पाइ।
क्यों सहि है दृग भार तो, निरखत नाह डराइ॥
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अंग राग दै अलिन मिलि, किये ललन तन गौर।
इक छवि ह्वै प्रीतम प्रिया, ललित लसे इक ठौर॥
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कबहुँ तहाँ हिय उमगि दोउ, कुँवर करत कल गान।
अली रूप रागिनि तहाँ, वारत अपने प्रान॥
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सिय तव रूप अपार पिय, पियत न नैन अघाय।
भये चहत सुर राज से, सियरै अति अकुलाय॥
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रीझि चितै चित चकित ह्वै, रूप जलधि-सी बाल।
वारत लाल तमाल दुति, अंक माल दै माल॥
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भुज गर उर कटि कुसुम मय, धरि भूषण पट पीत।
पाँयन नव नूपुर कहे, ललित लसे दोउ मीत॥
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तव अलि छलकत अलक अलि, रस शृंगारिक धार।
श्याम भये रंग भीजि तिहि, प्रीतम प्राण अधार॥
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सैन साल मोहित भरे, तापर पौढ़त आइ।
रस मन बचन अगम्य सो, कहौ कौन पै जाइ॥
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गति गायनि पायनि परसि, करि नूपुर झनकार।
पिय हिय हरने मंत्र को, करत सुचारु उचार॥
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कबहुँ उड़ावत भ्रमर पिय, हाँकत कबहुँ बयार।
प्राण पिया हँसि गहत कर, कहत अली बलिहार॥
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कबहुँ कहत पुर बधुन सों, निज हिय हित की बात।
स्वामिनि के गुण गण सुमरि, किंकरि गात न मात॥
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कबहुँ चितै दोउ परसपर, रूप जलधि से गात।
रीझत वारत अपन पौ, कहत बिवस ह्वै जात॥
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बहु सुगंध कुसुमन रची, दुग्ध फेन सम सैन।
ऐन मैन मन अलिन यह, रचै मैन को ऐन॥
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कबहुँ अचानक आय दृग, मूरति नवल किसोर।
छल से गहि लीनों मनो, निज हिय हरने चोर॥
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प्राण पियारी ललित पग, धरत फिरत जिहि ठौर।
ताहि दृगन हित बिवस ह्वै, लावत नवल किसोर॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere