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सलमान रश्दी की नई किताब में चाक़ू की कुछ बातें

उन सुनसान निद्राविहीन रातों में मैंने एक विचार के रूप में चाक़ू के बारे में बहुत सोचा। चाक़ू एक औज़ार था, और उसके प्रयोग से निकलता हुआ एक अर्जित अर्थ भी। 

भाषा भी तो एक चाक़ू थी। यह दुनिया को चाक कर सकती थी और इसका अर्थ उद्घाटित कर सकती थी—इसके काम करने की अंदरूनी पद्धति, इसके रहस्य, और इसके सत्य को खोलकर दिखा सकती थी। यह एक वास्तविकता से दूसरी वास्तविकता को आर-पार काट सकती थी। इससे बकवास की जा सकती थी, लोगों की आँखें खोली जा सकती थीं, सुंदरता सृजित की जा सकती थी। 

भाषा मेरा चाक़ू थी। अगर मैं अनापेक्षित रूप से किसी ग़ैरज़रूरी चक्कूबाज़ी में उलझ गया होता, शायद यही भाषा ही मेरी चाक़ू होती जिससे मैं भी जवाबी हमला करता।

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जब मौत आपके काफ़ी नज़दीक आती है तो बाक़ी दुनिया आपसे बहुत दूर चली जाती है और आप एक अथाह शांति महसूस कर सकते हैं। ऐसे समय में नरम शब्द सुकून पहुँचाते हैं, ताक़त देते हैं। वह आपको एहसास दिलाते हैं कि आप अकेले नहीं हैं और शायद आपने जीवन ऐसे ही जीकर ख़त्म नहीं कर दिया है। 

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मेरा हमेशा यक़ीन रहा है कि मोहब्बत एक ताक़त है, अपने सबसे शक्तिशाली रूप में यह पर्वतों को विचलित कर सकती है। यह दुनिया को बदल सकती है।

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डॉक्टर ने मुझसे कहा कि तुम्हें पता है कि तुम कितने ख़ुशक़िस्मत हो? तुम ख़ुशक़िस्मत हो कि जिस व्यक्ति ने तुम्हारे ऊपर चाक़ू से हमला किया उसे नहीं पता था कि चाक़ू से किसी इंसान को मारा कैसे जाता है।

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मैंने यह समझ लिया कि कोई और काम करने से पहले मुझे वह किताब लिखनी ही है जिसे अभी आप पढ़ रहे हैं।

मेरे लिए लिखना उस सबको अपनाना था जो कुछ घटा था, उसकी ज़िम्मेदारी लेना था, इसे अपना बनाना था और पीड़ित बन जाने से इनकार करना था।

मुझे कला से हिंसा का जवाब देना था।

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