Font by Mehr Nastaliq Web

मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला में यह कहा अशोक वाजपेयी ने

8 अगस्त 2024 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक मनोहर श्याम जोशी की जयंती की पूर्व-संध्या पर यह आयोजन जानकीपुल ट्रस्ट की ओर से किया गया। इस मौक़े पर अशोक वाजपेयी ने पहला मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यान दिया। 

अशोक वाजपेयी ने कहा कि साहित्य में तरह-तरह के हस्तक्षेप बढ़ते जा रहे हैं। उन्होंने मनोहर श्याम जोशी की एक कविता का हवाला दिया, जिसमें हनुमान का नाम आया है। वह बोले कि अगर उन्होंने आज के समय में यह कविता लिखी होती तो निश्चित रूप से उनके यहाँ सरकार की ओर से छापा पड़ा होता। वह बोले कि अब धर्म, राजनीति और मीडिया—साहित्य के सहचर नहीं रहे। साहित्य अपने समय में झूठ से लड़ रहा है। वह अकेला और निहत्था भी हो गया है, लेकिन उसने सच का साथ नहीं छोड़ा है।

उन्होंने यह भी कहा कि हम एक बहु समय में रह रहे हैं। आज के समय में कोई एक समय में नहीं जी रहा है। सभी ताक़तें सत्ता की वफ़ादारी में लगी हैं। उनका गुणगान कर रही हैं। झूठ और नफ़रत को फैलाने में लगी हैं। साहित्य अपने समय में इस झूठ के ख़िलाफ़ एक ज़रूरी हस्तक्षेप है। वह नैतिकता की आभा है। वह सत्य कहता है, रचता है, लेकिन अधूरे सच के साथ। वह अपने सच को भी संदेह की दृष्टि से देखता है। पिछले सौ साल का साहित्य साधारण की महिमा का बखान है। वह देशकाल में जन्म लेता है, पर मनुष्य को देशकाल से मुक्त भी करता है। वह एक समय में कई समय में जीता है और जीवन तथा समाज को बहुस्तरीय अर्थों में व्यक्त करता है। वह जिज्ञासा और प्रश्नाकुलता को बढ़ावा देता है। वह पक्षधरता, संवेदनशीलता, सौंदर्य और आनंद-रस की बात करता है।

अशोक वाजपेयी ने लगभग एक घंटे के अपने व्याख्यान में लेखकों की भूमिका को रेखांकित किया और यह भी कहा कि साहित्य की भाषा वहाँ जाती है, जहाँ वह पहले न गई हो या कम गई हो। लेखक को साहसी होना चाहिए। उसको भयभीत नहीं होना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ‘प्रतिमान’ के संपादक रविकांत ने मनोहर श्याम जोशी के भाषाई खेल और खेल-खेल में बड़ी वैचारिक बातों के उद्धरण देते हुए, यह कहा कि वह अपने समय से बहुत आगे के लेखक थे और हमारे समाज के समस्त अंतर्विरोध उनकी भाषा और उनके साहित्य में मिलते हैं।

इस अवसर पर मनोहर श्याम जोशी के पुत्र और अमेरिका के बाल्टीमोर विश्वविद्यालय में साइबर सुरक्षा के प्रोफ़ेसर अनुपम जोशी भी मौजूद थे। उन्होंने मनोहर श्याम जोशी के साहित्य पर बोलते हुए, उनकी अनेकार्थता को रेखांकित किया और कहा कि वह दुनिया भर के साहित्य-ज्ञान के उद्धरण देते थे और उनके लेखन में बहुलता और विविधता की आभा थी। 

उनके उपन्यासों को साधारण कहानी की तरह पढ़ा जा सकता है और बहुत से अर्थों को भी ग्रहण किया जा सकता है। मनोहर श्याम जोशी मूलतः प्रश्नाकुल लेखक थे, जिन्होंने कभी साहस का सतह नहीं छोड़ा। आज के समय के लेखकों में उनकी तरह की भाषा में बड़ी बातों को लिखने का कौशल होना चाहिए, जिससे लेखकों की बात दूर-दूर तक पहुँच पाए।

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

23 सितम्बर 2025

विनोद कुमार शुक्ल : 30 लाख क्या चीज़ है!

23 सितम्बर 2025

विनोद कुमार शुक्ल : 30 लाख क्या चीज़ है!

जनवरी, 2024 में मैंने भोपाल छोड़ दिया था। यानी मैंने अपना कमरा छोड़ दिया था। फिर आतंरिक परीक्षा और सेमेस्टर की परीक्षाओं के लिए जाना भी होता तो कुछ दोस्तों के घर रुकता। मैं उनके यहाँ जब पहुँचा तो पाया

05 सितम्बर 2025

अपने माट्साब को पीटने का सपना!

05 सितम्बर 2025

अपने माट्साब को पीटने का सपना!

इस महादेश में हर दिन एक दिवस आता रहता है। मेरी मातृभाषा में ‘दिन’ का अर्थ ख़र्च से भी लिया जाता रहा है। मसलन आज फ़लाँ का दिन है। मतलब उसका बारहवाँ। एक दफ़े हमारे एक साथी ने प्रभात-वेला में पिता को जाकर

10 सितम्बर 2025

ज़ेन ज़ी का पॉलिटिकल एडवेंचर : नागरिक होने का स्वाद

10 सितम्बर 2025

ज़ेन ज़ी का पॉलिटिकल एडवेंचर : नागरिक होने का स्वाद

जय हो! जग में चले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को। जिस नर में भी बसे हमारा नाम, तेज को, बल को। —दिनकर, रश्मिरथी | प्रथम सर्ग ज़ेन ज़ी, यानी 13-28 साल की वह पीढ़ी, जो अब तक मीम, चुटकुलों और रीलों में

13 सितम्बर 2025

त्याग नहीं, प्रेम को स्पर्श चाहिए

13 सितम्बर 2025

त्याग नहीं, प्रेम को स्पर्श चाहिए

‘लगी तुमसे मन की लगन’— यह गीत 2003 में आई फ़िल्म ‘पाप’ से है। इस गीत के बोल, संगीत और गायन तो हृदयस्पर्शी है ही, इन सबसे अधिक प्रभावी है इसका फ़िल्मांकन—जो अपने आप में एक पूरी कहानी है। इस गीत का वीड

12 सितम्बर 2025

विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय : एक अद्वितीय साहित्यकार

12 सितम्बर 2025

विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय : एक अद्वितीय साहित्यकार

बांग्ला साहित्य में प्रकृति, सौंदर्य, निसर्ग और ग्रामीण जीवन को यदि किसी ने सबसे पूर्ण रूप से उभारा है, तो वह विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय (1894-1950) हैं। चरित्र-चित्रण, अतुलनीय गद्य-शैली, दैनिक जीवन को

बेला लेटेस्ट