वसंत पर दोहे
वसंत को ऋतुराज कहा गया
है, जब प्रकृति शृंगार करती है। प्रकृति-काव्य का यह प्रमुख निमित्त रहा है। नई कविताओं ने भी वसंत की टेक से अपनी बातें कही हैं। इस चयन में वसंत विषयक कविताओं को शामिल किया गया है।
भौंर भाँवरैं भरत हैं, कोकिल-कुल मँडरात।
या रसाल की मंजरी, सौरभ सुख सरसात॥
इस ग्राम की मंजरी पर कहीं तो भँवरे मँडरा रहे हैं और कहीं कोयल मस्त हो रही है; इस प्रकार यह आम्रमंजरी सुगंधि और सुख को सरसा रही है।
आयो ना रितुराज पै, है यह दल जमराज।
सुमन सस्त्र सों मारिहै, बिना मित्र ब्रजराज॥
आवत सखी बसंत के, कारन कौन विशेष।
हरष त्रिया को पिया बिना, कोइल कूकत देख॥