मेहदी हसन : ‘पी के हम-तुम जो चले झूमते मैख़ाने से...’
मैं वर्ष 1977 में झुंझुनू से जयपुर आ गया था—राजस्थान विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम.ए. करने के लिए। वह अक्टूबर का महीना होगा, जब रामनिवास बाग़ स्थित रवींद्र मंच पर राजस्थान दिवस समारोह चल रहा
एकतरफ़ा प्यार को लेकर क्या कह गए हैं ग़ालिब
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और दुनिया में कई ‘सुख़न-वर’ हुए हैं। अच्छे-से-अच्छे हुए हैं और आगे भी होंगे, पर ग़ालिब की इस बात को कोई नहीं नका