बानी जू के बरन जुग सुबरनकन परमान।
सुकवि! सुमुख कुरुखेत परि हात सुमेर समान॥
लसत सरस सिंधुर-बदन, भालथली नखतेस।
विघनहरन मंगलकरन, गौरीतनय गनेस॥
कवि रसनिधि गणेश जी की वंदना करते हुए कहते हैं कि सुंदर हाथी के मुख वाले, मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए हुए, विघ्नों का नाश करने वाले, कल्याण करने वाले पार्वती-पुत्र गणेश जी महाराज सुशोभित हो रहे हैं।