डेनमार्क के आलस्टेड गाँव में एक रात
मैं जन्म से दिहाती नहीं हूँ, पर मैंने दिहात की ख़ूब खाक छानी है। सन् 1900 से 1910 तक जब मैं जौनपुर, बस्ती, बनारस तथा बरेली ज़िलों के स्कूलों के निरीक्षण का काम करता था, दिहाती भाइयों से मेरा हेल-मेल हो गया था। उनके गुण-दोष उस समय से मुझ पर प्रकट हो गए।