कुँए की जगत पर औरतों की भीड़ लगी थी—मलिन-वसना, जर्जरित-यौवना, श्रम-व्यस्त। ये औरतें किसी और सामाजिक व्यवस्था में जवान होतीं। लेकिन बीस-पच्चीस वर्ष की रहते भी दोपहरी उनकी ढल-सी चुकी थी—घोर श्रम और जीवन में कोई अन्य रस न होने से लगातार कमज़ोर, अल्पायु
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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