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गहराई पर उद्धरण

भीतर इतनी गहराई हो कि कोई तुम्हारी थाह ले सके। अथाह जिनकी गहराई है, अगोचर उनकी ऊँचाई हो जाती है।

ओशो

जीवन की गहराई की अनुभूति के कुछ क्षण ही होते हैं, वर्ष नहीं। परंतु यह क्षण निरंतरता से रहित होने के कारण कम उपयोगी नहीं कहे जा सकते।

महादेवी वर्मा

जीवन उतना ही ऊँचा हो जाता है, जितना कि गहरा हो।

ओशो

जो ऊँचे तो होना चाहते हैं, लेकिन गहरे नहीं, उनकी असफलता सुनिश्चित है। गहराई के आधार पर ही ऊँचाई के शिखर सम्हलते है।

ओशो

गहराई मूल्य है, जो कि ऊँचा होने के लिए चुकाना ही पड़ता है।

ओशो