नाव पर उद्धरण
कवियों ने नाव को जीवन
और गति के प्रतीक के रूप में देखा है। जीवन के भवसागर होने की कल्पना में पार उतरने का माध्यम नाव, नैया, नौका को ही होना है।


किसी किश्ती पर अगर फ़र्ज़ का मल्लाह न हो तो फिर उसे दरिया में डूब जाने के सिवा और कोई चारा नहीं।
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