Font by Mehr Nastaliq Web
keshawdaas's Photo'

केशवदास

1555 - 1617 | ओरछा, मध्य प्रदेश

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। काव्यांग निरूपण, उक्ति-वैचित्र्य और अलंकारप्रियता के लिए स्मरणीय। काव्य- संसार में ‘कठिन काव्य के प्रेत’ के रूप में प्रसिद्ध।

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। काव्यांग निरूपण, उक्ति-वैचित्र्य और अलंकारप्रियता के लिए स्मरणीय। काव्य- संसार में ‘कठिन काव्य के प्रेत’ के रूप में प्रसिद्ध।

केशवदास के दोहे

बानी जू के बरन जुग सुबरनकन परमान।

सुकवि! सुमुख कुरुखेत परि हात सुमेर समान॥

चरण धरत चिंता करत, नींद भावत शोर।

सुबरण को सोधत फिरत, कवि व्यभिचारी चोर॥

राजत रंच दोष युत कविता बनिता मित्र।

बुंदक हाला परत ज्यों गंगाघट अपवित्र॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Recitation

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए