Font by Mehr Nastaliq Web

प्रतिज्ञात देश

prtigyat desh

जुज़ेपे उंगारेत्ती

जुज़ेपे उंगारेत्ती

प्रतिज्ञात देश

जुज़ेपे उंगारेत्ती

और अधिकजुज़ेपे उंगारेत्ती

    एक

    छायाएँ लुप्त होती हुईं

    अंतराल में विगत वर्षों के,

    जब दु:ख घाव नहीं छोड़ जाते थे

    और सुन पड़ते हैं उस वय के

    किशोर प्रकाम्य उरोजों के उभार

    और तुम्हारी सहमी आँखों में उद्घाटित होती है

    मधुमास की लापरवाह आग

    सुरभित कपोलों से

    उपेक्षा, अध्यवसायी प्रेत

    जो समय-प्रवाह को अवरुद्ध कर देता है

    और बहुत बाद में उसका आघात पता चलता है

    —छोड़ो इस आहत मन को!

    दो

    एक रंगी हुई अग्नि ने

    शाम को बिलमा दिया है

    और घास में एक थरथराहट धीरे-धीरे

    अनंत से भाग्य का पुनः गठबंधन करा रही है

    तब अनदेखी, एक चंद्रवत् प्रतिध्वनि

    जन्मी और पानी की थरथराहटों में घुल गई।

    मैं नहीं जानता कौन ज़्यादा प्राणवान था

    —मदोन्मत्त धारा से शिकवे के स्वर

    या प्रतीक्षित प्रतिध्वनि जो कोमलतापूर्वक मौन थी!

    तीन

    अब रात ख़ामोश हो गई है

    ख़ामोश है समुद्र भी;

    सब ख़ामोश हैं; पर मैं कराह उठता हूँ

    क्रंदन, एकाकी मेरे हृदय का,

    क्रंदन प्यार का, ग्लानि का

    अपने हृदय का जो राख होता रहा

    जब से मैंने तुम्हें देखा, और तुमने मुझे

    और मैं कुछ नहीं रहा सिवा एक दुर्बल प्राणी के

    मैं क्रंदन करता हूँ और मेरा हृदय प्रज्वलित है, अशांत,

    जब से मैं केवल एक

    परित्यक्त और खंडहर सा टूटता हुआ रह गया हूँ

    चार

    सिर्फ़ मेरे मर्म में हैं छिपे घाव

    घने उष्ण प्रदेश

    दलदलों पर सर्दी के कुहरों

    की गुंजलकें जिनमें आकांक्षाएँ तड़पती हैं

    नींद में, कि आह हम पैदा ही क्यों हुए।

    पाँच

    दूध पीते मगर अत्यंत उत्सुक, अधीर बच्चों की तरह

    हमें चिंता नींद में ले गई

    किस दूजे की ओर? कहाँ

    उन पर खिल आए रंग और चढ़ गई आब

    उन प्रथम फलों पर

    जो हमारी मधुर शरारतों द्वारा

    ज्योति में अकस्मात अनावृत हो उठे

    अपने संपूर्ण वैभव में

    बाद में जब हम अपने रात-रात के जागरणों में उद्दीप्त हो

    चुकते थे

    छः

    सारी पीड़ाएँ खो गईं जीवन की रहस्य चेतना की,

    लंबे जीवन के अभ्यस्त छोरों पर

    और अपने में रुपांतरित होती हुई

    बूँद-बूँद कर पश्चात्ताप की झुँझलाहटों को जो स्वीकार करती हैं

    सात

    अँधेरे में ख़ामोश

    तुम अंतविहीन खेतों में भटकती हो

    तुम किसी की बाट नहीं जोह रहीं, गर्वित हो किसी को

    पार्श्व में पाकर

    आठ

    तुम्हारा भेद मेरे चेहरे से तुम्हारे चेहरे में आता है

    तुम्हारे प्यारे आकार मुझमें आवृत्ति पाते हैं

    हमारी आँखों में और कुछ नहीं है

    और निराशा में हमारा क्षणिक प्यार

    विलंब के पालों का अनंत कंपन

    नौ

    अब समुद्र के चल दृश्य मुझे आकर्षित नहीं करते

    और सुबह की नम ओस इस पत्ती पर या उस फूल पर

    और अब लड़ता हूँ भारी चट्टानों से

    और वह रात जो पलकों पर मैं ढोता हूँ

    स्मृति-चित्र, क्या लाभ है उनका—

    मेरे लिए, जो विस्मृत किया जा चुका है?

    दस

    क्या तुम्हें सुन नहीं पड़ती अनलंकृत वृक्ष की पत्ती

    अकस्मात् चरमर करती हुई नदी के किनारे पत्थरों पर

    मैं आज अपने पतन को अलंकृत करूँगा

    दिखेगा कि पतझर में गिरी पत्तियों में

    जुड़ गई है एक गुलाबी आभा

    ग्यारह

    और अशांत

    उनके आकाशों ने अर्पित की है

    हमारी अंतरंग ज्वालाओं को बादल की छाँह

    परस्पर अनुरक्त हमारे निश्छल जुड़वाँ प्राण

    जाग गए और जागते ही पलायन करने लगे

    बारह

    अंधड़ में खुल गया, अँधेरे में, एक बंदरगाह

    कहा गया कि वह सुरक्षित है

    वह एक तारों भरी खाड़ी थी

    और उसका आकाश परिवर्तनहीन जान पड़ता था

    पर अब! आह कितना परिवर्तित हो चुका है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 135)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : जुज़ेपे उंगारेत्ती
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY