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आने और जाने के बीच

aane aur jane ke beech

अनुवाद : बेजी जैसन

ओक्ताविओ पाज़

अन्य

अन्य

ओक्ताविओ पाज़

आने और जाने के बीच

ओक्ताविओ पाज़

और अधिकओक्ताविओ पाज़

    जाने और ठहरने के बीच

    दिन लहकता है

    अपनी ही पारदर्शिता के नेह में

    घूमती दुपहरी अब गर्त में है

    जहाँ धरती अपने थिर में झूल रही है

    सब प्रत्यक्ष है

    और सब भ्रांति भर

    सब निकट है

    पर अस्पृश्य

    काग़ज़, क़लम, पेंसिल, काँच

    अपने नाम की छाया में ऊँघते हुए

    मेरी कनपटियों में धड़कता समय

    दुहराता है रक्त का अपरिवर्तनीय शब्दांश

    उदासीन दीवार को रोशनियाँ

    भुतही परछाइयों के रंगमंच में बदलती हैं

    मैं स्वयं को एक आँख के मध्य में पाता हूँ

    स्वयं को एकटक देखते हुए

    पल बिखर जाता है

    स्तब्ध

    मैं रुकता हूँ

    चल देता हूँ :

    मैं एक पड़ाव भर हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : ओक्ताविओ पाज़

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