यूनिवर्सिटी का प्रेम और पापा का स्कूटर
कठफोड़वा
08 मई 2025

उन दिनों इलाहबाद में प्रेम की जगहें कम होती थीं। ऐसी सार्वजनिक जगहों की कमी थी, जहाँ पर प्रेमी युगल थोड़ा वक़्त बिता सकें या साथ बैठ सकें। ग्रेजुएशन में मुझे पहला प्रेम हुआ। वह हिंदी विभाग में एक एमए की लड़की थी। उस समय राह चलते प्रेम हो जाया करता था। हॉस्टल के सामने बैठे हुए अगर रिक्शा पे जाती हुई कोई लड़की देखकर बस मुस्कुरा दे तो महीनों उसी समय उसी जगह खड़े रहते थे कि वो मुस्कान फिर से दिख जाए। क्लास में कोई लड़की किसी दिन बात कर ले, कुछ पूछ ले तो रोज़ समय से पहले क्लास पहुँचते थे और सबसे बाद में निकलते थे, भले ही वह न क्लास आए या न आए। दुबारा कभी बात न हो, फिर भी महीनों तक यह उम्मीद बनी रहती थी कि एक दिन फिर बात होगी।
आज सोचता हूँ तो यह एक तरह का अपराध है, जिसे स्टॉकिंग कहते हैं, पर उस समय यह एक तरह की तपस्या थी। चाहे बात हो या न हो, एक बार नज़र मिली, उसी नज़र से संवाद हुआ और हो गया प्रेम। इलाहाबाद के लड़कों को ऐसे प्रेम ख़ूब हुआ करते थे। कई तो ऐसे भी थे जो कभी बता ही नहीं सके कि उन्हें कितनी बार प्रेम हुआ।
मैं जिस स्कूल से पढ़ा, उस स्कूल के किसी लड़के ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाख़िला नहीं लिया। लगभग सब बाहर चले गए। जो रह गए, वे पिता का व्यापार या काम सँभालने लगे। मुझे एक ज़िद थी—जितनी बार मैं यूनिवर्सिटी के सामने से गुज़रता था, सोचता था कि एक दिन यहाँ पढ़ूँगा। एक तो मुझे गोथिक शिल्प में बना यूनिवर्सिटी का स्ट्रक्चर बहुत पसंद था और दूसरा मुझे दर्शन से बहुत प्रेम था।
ख़ैर, वो लड़की हिंदी पढ़ रही थी। उसने मुझे कुछ किताबें दीं। मिलने की जगह कम थी तो हम अल्फ़्रेड पार्क, आनंद भवन, हाथी पार्क और कभी-कभी किसी छोटे से रेस्टोरेंट में कुछ मिनटों के लिए मिलते थे। छूने की हिम्मत नहीं होती थी। वह जानबूझकर मेरा हाथ पकड़ लेती तो झट से छुड़ा लेता।
बहुत सोचने के बाद मैंने जुगत लगाई कि पापा के स्कूटर पर पीछे बैठाकर घूमते हुए बात की जाए, और वह स्कूटर हमारे लिए सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गया। जिस दिन मिलना होता, स्कूटर में तेल फुल करवाकर सोराँव की तरफ़ निकल जाते। ख़ूब बातें करते, रुककर गन्ने का रस पीते और सिंघाड़ा खाते। बड़ा मन था कि किसी दिन उसको लेकर सिनेमा जाऊँ। लेकिन यह हो न सका। मैं यूनिवर्सिटी में चर्चित छात्रों में से एक था और डर लगता था कि कहीं यह बात खुल जाए तो सब मेरा मख़ौल न उड़ाएँ।
बहरहाल, बहुत दिन तक वो प्रेम चल न पाया। मुझे एक दूसरी लड़की से प्रेम हुआ और वो पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली चली गई। सुना है प्रोफ़ेसर है—एक यूनिवर्सिटी में।
उम्मीद है, उसकी यूनिवर्सिटी में प्रेम करने की जगहें कम नहीं होंगी।
~~~
अगली बेला में जारी...
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
12 जून 2025
‘अब सनी देओल में वो बात नहीं रही’
‘बॉर्डर 2’ का विचार सुनते ही जो सबसे पहला दृश्य मन में कौंधा, वह बालकनी में खड़े होकर पिता का कहना था—‘अब सनी देओल में वो बात नहीं रही।’ इस वाक्य में सिर्फ़ एक अभिनेता का अवसान नहीं था, एक पूरे युग क
29 जून 2025
‘बिंदुघाटी’ पढ़ते तो पूछते न फिरते : कौन, क्यों, कहाँ?
• उस लड़की की छवि हमेशा के लिए स्टीफ़न की आत्मा में बस गई, और फिर उस आनंद में डूबा हुआ पवित्र मौन किसी भी शब्द से नहीं टूटा... आप सोच रहे होंगे कि यहाँ किसी आशिक़ की किसी माशूक़ के लिए मक़बूलियत की बा
14 जून 2025
बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल!
‘बेवफ़ा सोनम बनी क़ातिल’—यह नब्बे के दशक में किसी पल्प साहित्य के बेस्टसेलर का शीर्षक हो सकता था। रेलवे स्टेशन के बुक स्टाल्स से लेकर ‘सरस सलिल’ के कॉलमों में इसकी धूम मची होती। इसका प्रीक्वल और सीक्वल
10 जून 2025
‘जब सोशल मीडिया नहीं था, हिंदी कविता अधिक ब्राह्मण थी’
वर्ष 2018 में ‘सदानीरा’ पर आपकी कविता-पंक्ति पढ़ी थी—‘यह कवियों के काम पर लौटने का समय है’। इस बीच आप फ़्रांस से लौटकर आ गए। इस लौटने में काम पर कितना लौटे आप? 2018 में जब यह कविता-पंक्ति संभव हुई
20 जून 2025
8/4 बैंक रोड, इलाहाबाद : फ़िराक़-परस्तों का तीर्थ
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम.ए. में पढ़ने वाले एक विद्यार्थी मेरे मित्र बन गए। मैं उनसे उम्र में छोटा था, लेकिन काव्य हमारे मध्य की सारी सीमाओं पर हावी था। हमारी अच्छी दोस्ती हो गई। उनका नाम वीरेंद्र