दीपांकर शिवमूर्ति के बेला
दफ़्तर की दास्तान
पांचाली और नगरवधू हमारे काडर में दफ़्तरों की दो कोटियाँ थीं। छोटे दफ़्तर-आईएसओ, जिनमें अनुवादकों की संख्या कम होती थी। उसके बरअक्स मुख्यालय जहाँ अनुवादक इफ़रात में रहते थे। एक बार बातों-बातों में
जौनपुर भड़ैंती उर्फ़ नक़ल : एक ख़त्म होती नाट्य-विधा
कुछ वर्ष पूर्व तक पूर्वांचल के देहातों-क़स्बों-शहरों की दीवारों पर हिंदुस्तानी, अवधी या भोजपुरी में लिखे सूचना-पट्ट इस तरह के होते थे—कल्लू नक़्क़ाल, बिस्मिल्लाह भाँड, रमपत हरामी मंडली इत्यादि... कि