

मनुष्य जीवन का उद्देश्य आत्मदर्शन है। और उसकी सिद्धि का मुख्य एवं एकमात्र उपाय पारमार्थिक भाव से जीव-मात्र की सेवा करना है, उसमें तन्मयता तथा अद्वैत के दर्शन करना है।

दुर्घटना हो जाने पर सामाजिक वर्गों और संस्थाओं में परस्पर संबंध अचानक पारदर्शी हो उठते हैं।

पारदर्शिता यदि कोई मूल्य हो तो भी मानक नहीं हो सकता।