सूर्य पर दोहे

सूर्य धरती पर जीवन का

आधार है और प्राचीन समय से ही मानवीय आस्था का विषय रहा है। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया और उसकी स्तुति में श्लोक रचे गए। इस चयन में सूर्य को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहिं चूक।

रहिमन तेहि रबि को कहा, जो घटि लखै उलूक॥

जो शीत हरता है, अंधकार का हरण करता है अर्थात अँधेरा दूर भगाता है और संसार का भरण करता है। रहीम कहते हैं कि उस सूर्य को अगर उल्लू कमतर आँकता है तो उस सूर्य को क्या फ़र्क पड़ता है! यानी महान लोगों की महानता पर ओछे इंसान के कहने से आँच नहीं आती।

रहीम

नखत-मुकत आँगन-गगन, प्रकृति देति बिखराय।

बाल हंस चुपचाप चट, चमक-चोंच चुगि जाय॥

दुलारेलाल भार्गव
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सूरज के आगै कहा, करै जींगणा जोति।

सुन्दर हीरा लाल घर, ताहि दिखावै पोति॥

सुंदरदास

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