रज़िया सुल्तान में जाँ निसार अख़्तर का लिखा और लता मंगेशकर का गाया एक यादगार गीत है : ‘‘ऐ दिल-ए-नादाँ...’’, उसके एक अंतरे में ये पंक्तियाँ आती हैं :
‘‘हम भटकते हैं, क्यूँ भटकते हैं, दश्त-ओ-सेहरा मे
सुदीप्ति
क्या हम परिवार को देश की तरह देख सकते हैं
हमारे सामने एक विकट प्रश्न खड़ा हो गया है। क्या हमारे परिवार खत्म हो जाएंगे? इस मामले में नहीं कि हमारे परिवार के लोग एक दूसरे से दूर रहने लगे हैं, दूर नौकरियां करने लगे हैं और कभी कभी ही मिल पाते हैं
ऋषभ प्रतिपक्ष
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