बाल महाभारत : भीम और हनुमान
सुहावना मौसम था। द्रौपदी आश्रम के बाहर खड़ी थी। इतने में एक सुंदर फूल हवा में उड़ता हुआ उसके पास आ गिरा। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीमसेन के पास जाकर बोली—“क्या तुम जाकर ऐसे ही कुछ और फूल ला सकोगे?” यह कहती हुई द्रौपदी हाथ में फूल लिए युधिष्ठिर के पास
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बाल महाभारत : शकुनि का प्रवेश
एक दिन युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा—“भाइयो! युद्ध की संभावना ही मिटा देने के उद्देश्य से मैं यह शपथ लेता हूँ कि आज से तेरह बरस तक मैं अपने भाइयों या किसी और बंधु को बुरा-भला नहीं कहूँगा। सदा अपने भाई-बंधुओं की इच्छा पर ही चलूँगा। मैं ऐसा कुछ नहीं
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बाल महाभारत : मायावी सरोवर
पांडवों के वनवास की अवधि पूरी होने को ही थी। बारह बरस समाप्त होने में कुछ ही दिन रह गए थे। उन्हीं दिनों एक निर्धन ब्राह्मण की सहायता करते हुए पाँचों भाई जंगल में काफ़ी दूर निकल आए। वे थके हुए थे, सो ज़रा सुस्ताने लगे। युधिष्ठिर नकुल से बोले—“भैया! ज़रा
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बाल महाभारत : द्रौपदी-स्वयंवर
जिस समय पांडव एकचक्रा नगरी में ब्राह्मणों के वेष में जीवन बिता रहे थे, उन्हीं दिनों पांचाल-नरेश की कन्या द्रौपदी के स्वयंवर की तैयारियाँ होने लगीं। एकचक्रा नगरी के ब्राह्मणों के झुंड पांचाल देश के लिए रवाना हुए। पांडव भी उनके साथ ही हो लिए। पाँचों भाई
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बाल महाभारत : विराट का भ्रम
त्रिगर्त-राजा सुशर्मा पर विजय प्राप्त करके राजा विराट नगर में वापस आए, तो पुरवासियों ने उनका धूमधाम से स्वागत किया। अंत:पुर में राजकुमार न उत्तर को न पाकर राजा ने पूछताछ की तो स्त्रियों ने बड़े उत्साह के साथ बताया कि कुमार कौरवों से लड़ने गए हैं। राजा
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बाल महाभारत : अज्ञातवास
सब अपना-अपना भेष बदलकर राजा विराट के यहाँ चाकरी करने गए, तो विराट ने उन्हें अपना नौकर बनाकर रखना उचित न समझा। हर एक के बारे में उनका यही विचार था कि ये तो राज करने योग्य प्रतीत होते हैं। मन में शंका तो हुई, पर पांडव के बहुत आग्रह करने और विश्वास दिलाने
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बाल महाभारत : युधिष्ठिर की वेदना
कुछ देर बाद युधिष्ठिर रोती-बिलखती हुई स्त्रियों के समूह को पार करते हुए भाइयों व श्रीकृष्ण सहित धृतराष्ट्र के पास आए व नम्रतापूर्वक हाथ जोड़े खड़े रहे। इसके बाद धृतराष्ट्र ने भीम को अपने पास बुलाया। धृतराष्ट्र के हाव-भाव से श्रीकृष्ण ने अंदाज़ा लगाया
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बाल महाभारत : पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति व्यवहार
कौरवों पर विजय पा लेने के बाद सारे राज्य पर पांडवों का एकछत्र अधिकार हो गया और उन्होंने कर्तव्य समझकर राज-काज सँभाल लिया। फिर भी जिस संतोष और सुख की उन्हें आशा वह प्राप्त नहीं हुआ। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को आज्ञा दे रखी थी कि पुत्रों के बिछोह से
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बाल महाभारत : इंद्रप्रस्थ
द्रौपदी के स्वयंवर में जो कुछ हुआ था, उसकी ख़बर जब हस्तिनापुर पहुँची तो विदुर बड़े ख़ुश हुए। धृतराष्ट्र के पास दौड़े गए और बोले—“पांडव अभी जीवित हैं। राजा द्रुपद की कन्या को स्वयंवर में अर्जुन ने प्राप्त किया है। पाँचों भाइयों ने विधिपूर्वक द्रौपदी के
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बाल महाभारत : पहला, दूसरा और तीसरा दिन
कौरवों की सेना के अग्रभाग पर प्रायः दुःशासन ही रहा करता था और पांडवों की सेना के आगे भीमसेन बाप ने बेटे को मारा। बेटे ने पिता के प्राण लिए। भानजे ने मामा का वध किया। मामा ने भानजे का काम तमाम किया। युद्ध का यह दृश्य था। पहले दिन की लड़ाई में भीष्म ने
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बाल महाभारत : राजदूत संजय
उपप्लव्य नगर में रहते हुए पांडवों ने अपने मित्र राजाओं को दूतों द्वारा संदेश भेजकर कोई सात अक्षौहिणी सेना एकत्र की। उधर कौरवों ने भी अपने मित्रों द्वारा काफ़ी बड़ी सेना इकट्ठी कर ली, जो ग्यारह अक्षौहिणी तक हो गई थी। पांचाल नरेश के पुरोहित, जो युधिष्ठिर
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बाल महाभारत : शांतिदूत श्रीकृष्ण
शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण हस्तिनापुर गए। उनके साथ सात्यकि भी गए थे। रास्ते में कुशस्थल नामक स्थान में वह एक रात विश्राम करने के लिए ठहरे। हस्तिनापुर में जब यह ख़बर पहुँची कि श्रीकृष्ण पांडवों की ओर से दूत बनकर संधि चर्चा के लिए आ रहे
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बाल महाभारत : मंत्रणा
तेरहवाँ बरस पूरा होने पर पांडव विराट की राजधानी छोड़कर विराटराज के ही राज्य में स्थित 'उपप्लव्य' नामक नगर में जाकर रहने लगे। अज्ञातवास की अवधि पूरी हो चुकी थी। इसलिए पाँचों भाई प्रकट रूप में रहने लगे। आगे का कार्यक्रम तय करने के लिए उन्होंने अपने भाई-बंधुओं
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बाल महाभारत : द्वेष करनेवाले का जी नहीं भरता
पांडवों के वनवास के दिनों में कई ब्राह्मण उनके आश्रम गए थे। वहाँ से लौटकर वे हस्तिनापुर पहुँचे और धृतराष्ट्र को पांडवों के हाल-चाल सुनाए। धृतराष्ट्र ने जब यह सुना कि पांडव वन में बड़ी तकलीफ़ें उठा रहे हैं, तो उनके मन में चिंता होने लगी। लेकिन दुर्योधन
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बाल महाभारत : भीष्म शर-शय्या पर
दसवें दिन का युद्ध शुरू हुआ। आज पांडवों ने शिखंडी को आगे किया था। आगे-आगे शिखंडी और उसके पीछे अर्जुन। शिखंडी की आड़ से अर्जुन ने पितामह पर बाण बरसाए। शिखंडी के बाणों ने वृद्ध पितामह का वक्ष-स्थल बींध डाला। भीष्म ने अपने चेहरे पर ज़रा भी शिकन न आने दी
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बाल महाभारत : अश्वत्थामा
दुर्योधन पर जो कुछ बीती, उसका हाल सुनकर अश्वत्थामा बहुत क्षुब्ध हो उठा। उसके पिता द्रोणाचार्य को मारने के लिए जो कुचक्र रचा गया था, वह उसे भूला नहीं था। वह उस स्थान पर जा पहुँचा, जहाँ दुर्योधन मृत्यु की प्रतीक्षा करता हुआ पड़ा था। दुर्योधन के सामने जाकर
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बाल महाभारत : धृतराष्ट्र की चिंता
जब द्रौपदी को साथ लेकर पांडव वन की ओर जाने लगे थे, तो धृतराष्ट्र ने विदुर को बुला और पूछा—“विदुर, पांडु के बेटे और द्रौपदी कैसे जा रहे हैं? मैं कुछ देख नहीं सकता हूँ। तुम्हीं बताओ कैसे जा रहे हैं वे?” विदुर ने कहा—“कुंती-पुत्र युधिष्ठिर, कपड़े से
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बाल महाभारत : कर्ण और दुर्योधन भी मारे गए
द्रोण के मारे जाने पर कौरव-पक्ष के राजाओं ने कर्ण को सेनापति मनोनीत किया। मद्रराज शल्य कर्ण के सारथी बने। दूसरे दिन कर्ण के सेनापतित्व में फिर से घमासान युद्ध जारी हो गया। अर्जुन की रक्षा करता हुआ भीम, अपने रथ पर उसके पीछे-पीछे चला और दोनों एक साथ कर्ण
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बाल महाभारत : अंबा और भीष्म
सत्यवती के पुत्र चित्रांगद बड़े ही वीर, परंतु स्वेच्छाचारी थे। एक बार किसी गंधर्व के साथ युद्ध हुआ, उसमें वह मारे गए। उनके कोई पुत्र न था, इसलिए उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठे विचित्रवीर्य की आयु उस समय बहुत छोटी थी, इस कारण
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बाल महाभारत : सातवाँ, आठवाँ और नवाँ दिन
सातवें दिन का युद्ध केंद्रित न था, बल्कि कई मोर्चों पर व्याप्त था। प्रत्येक मोर्चे पर विख्यात वीरों में घमासान युद्ध होता रहा। एक मोर्चे पर अर्जुन के विरूद्ध स्वयं भीष्म डटे हुए थे। एक स्थान पर द्रोणाचार्य और विराटराज में भीषण युद्ध हो रहा था। एक अन्य
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बाल महाभारत : कुंती
यदुवंश के प्रसिद्ध राजा शूरसेन श्रीकृष्ण के पितामह थे। इनके पृथा नाम की कन्या थी। उसके रूप और गुणों की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। शूरसेन के फुफेरे भाई कुंतिभोज के कोई संतान न थी। शूरसेन ने कुंतिभोज को वचन दिया था कि उनकी जो पहली संतान होगी, उसे कुंतिभोज
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बाल महाभारत : बारहवाँ दिन
युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने की चेष्टा के विफल हो जाने पर अंत में यही निश्चय किया गया कि अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा जाए और लड़ते-लड़ते उसे युधिष्ठिर से दूर हटाकर ले जाया जाए। युद्ध का बारहवाँ दिन था। बहुत ही भयानक लड़ाई हो रही थी। आचार्य द्रोण ने युधिष्ठिर
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बाल महाभारत : प्रतिज्ञा-पूर्ति
द्रोण ने कहा—“मालूम होता है, यह तो अर्जुन ही आया है।” आचार्य की शंका और घबराहट दुर्योधन को ठीक न लगी। तभी कर्ण बोला—“पांडव जुए के खेल में जब हार गए थे, तो शर्त के अनुसार उन्हें बारह बरस का वनवास और एक बरस अज्ञातवास में बिताना था। अभी तेरहवाँ बरस पूरा
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बाल महाभारत : भीष्मप्रतिज्ञा
तेजस्वी पुत्र को पाकर राजा प्रफुल्लित मन से नगर को लौटे और देवव्रत राजकुमार के पद को सुशोभित करने लगे। चार वर्ष और बीत गए। एक दिन राजा शांतनु यमुना-तट की ओर घूमने गए तो वहाँ अप्सरा-सी सुंदर एक तरुणी खड़ी दिखाई दी। तरुणी का नाम सत्यवती था गंगा के वियोग
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बाल महाभारत : द्रोणाचार्य
आचार्य द्रोण महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। पांचाल-नरेश का पुत्र द्रुपद भी द्रोण के साथ ही भरद्वाज-आश्रम में शिक्षा पा रहा था। दोनों में गहरी मित्रता थी। कभी-कभी राजकुमार द्रुपद उत्साह में आकर द्रोण से यहाँ तक कह देता था कि पांचाल देश का राजा बन जाने पर
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बाल महाभारत : युधिष्ठिर की चिंता और कामना
दुर्योधन को अर्जुन का पीछा करते देखकर पांडव सेना ने शत्रुओं पर और भी ज़ोर का हमला कर दिया। धृष्टद्युम्न ने सोचा कि जयद्रथ की रक्षा करने हेतु यदि द्रोण भी चले गए, तो अनर्थ हो जाएगा। इस कारण द्रोणाचार्य को रोके रखने के इरादे से उसने द्रोण पर लगातार आक्रमण
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बाल महाभारत : चौथा, पाँचवाँ और छठा दिन
पौ फटी लड़ाई शुरू हो गई। शल्य का पुत्र मारा गया। भीमसेन ने दुर्योधन के आठ भाई मार डाले। दुर्योधन ने भी निशाना साधकर भीमसेन की छाती पर एक भीषण अस्त्र चलाया। चोट खाकर भीम मूच्छित-सा होकर रथ पर बैठ गया। अपने पिता का यह हाल देखकर घटोत्कच के क्रोध का ठिकाना
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बाल महाभारत : पांडवों की रक्षा
पाँचों पांडव माता कुंती के साथ वारणावत के लिए चल पड़े। उनके हस्तिनापुर छोड़कर वारणावत जाने की ख़बर पाकर नगर के लोग उनके साथ हो लिए। बहुत दूर जाने के बाद युधिष्ठिर का कहा मानकर नगरवासियों को लौट जाना पड़ा। दुर्योधन के षड्यंत्र और उससे बचने का उपाय विदुर
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बाल महाभारत : चौसर का खेल व द्रौपदी की व्यथा
धृतराष्ट्र की बात मानकर विदुर पांडवों के पास आए। उनको देखकर महाराज युधिष्ठिर उठे और उनका यथोचित स्वागत-सत्कार किया। विदुर आसन पर बैठते हुए शांति से बोले—“हस्तिनापुर में खेल के लिए एक सभा मंडप बनाया गया है, जो तुम्हारे मंडप के समान ही सुंदर है राजा धृतराष्ट्र
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बाल महाभारत : महाभारत कथा
महाभारत की कथा महर्षि पराशर के कीर्तिमान पुत्र वेद व्यास की देन है। व्यास जी ने महाभारत की यह कथा सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव को कंठस्थ कराई थी और बाद में अपने दूसरे शिष्यों को मानव-जाति में महाभारत की कथा का प्रसार महर्षि वैशंपायन के द्वारा हुआ। वैशंपायन
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बाल महाभारत : भूरिश्रवा, जयद्रथ और आचार्य द्रोण का अंत
उधर अर्जुन सिंधुराज जयद्रथ के साथ युद्ध कर रहा था और उसका वध करने के मौक़े की तलाश में था। इतने में भूरिश्रवा ने सात्यकि को ऊपर उठाया और ज़मीन पर ज़ोर से दे पटका। कौरव-सेना ज़ोरों से कोलाहल कर उठी—“सात्यकि मारा गया।” अर्जुन ने देखा कि मैदान में मृत-से
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बाल महाभारत : पांडवों और कौरवों के सेनापति
श्रीकृष्ण उपप्लव्य लौट आए और हस्तिनापुर की चर्चा का हाल पांडवों को सुनाया। युधिष्ठिर अपने भाइयों से बोले—“भैया! अब सेना सुसज्जित करो और व्यूह रचना सुचारु रूप से कर लो।” पांडवों की विशाल सेना को सात हिस्सों में बाँट दिया गया। द्रुपद, विराट, धृष्टद्युम्न,
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बाल महाभारत : श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर
महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद श्रीकृष्ण छत्तीस बरस तक द्वारका में राज्य करते रहे। उनके सुशासन में यदुवंश ने सुख-समृद्धि को भोगा, परंतु आपसी फूट के कारण अंत: यह विशाल यदुवंश समाप्त हो गया। यह वंश-नाश देखकर बलराम को असीम शोक हुआ और उन्होंने वहीं समाधि