भूख पर दोहे

भूख भोजन की इच्छा प्रकट

करता शारीरिक वेग है। सामाजिक संदर्भों में यह एक विद्रूपता है जो व्याप्त गहरी आर्थिक असमानता की सूचना देती है। प्रस्तुत चयन में भूख के विभिन्न संदर्भों का उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।

चंच संवारी जिनि प्रभू, चूंन देइगो आंनि।

सुंदर तूं विश्वास गहि, छांडि आपनी बांनि॥

सुंदरदास

सुंदर प्रभुजी देत हैं, पाहन मैं पहुंचाइ।

तूं अब क्यौं भूखौ रहै, काहे कौं बिललाइ॥

सुंदरदास

सुन्दर प्रभुजी पेट इनि, जगत कियौ सब भांड।

कोई पंचामृत भखै, कोई पतरा मांड॥

सुंदरदास

सुंदर प्रभुजी सब कह्यौ, तुम आगै दुख रोइ।

पेट बिना हीं पेट करि, दीनी खलक बिगोइ॥

सुंदरदास

सुन्दर प्रभुजी सबनि कौं, पेट भरन की चिंत।

कीरी कन ढूंढत फिरै, मांखी रस लैजंत॥

सुंदरदास

सुंदर प्रभुजी पेट कौं, साधै जाइ मसान।

यंत्र मंत्र आराध करि, भरहिं पेट अज्ञान॥

सुंदरदास

सुन्दर प्रभुजी पेट बसि, चौरासी लख जंत।

जल थल कै चाहै सकल, जे आकाश बसंत॥

सुंदरदास

सुन्दर प्रभुजी पेट बसि, भये रंक अरु राव।

राजा राना छत्रपति, मीर मलिक उमराव॥

सुंदरदास

बिद्याधर पंडित गुनि, दाता सूर सुभट्ट।

सुंदर प्रभुजी पेट इनि, सकल किये षटपट्ट॥

सुंदरदास

सुन्दर प्रभुजी पेट बसि, देवी देव अपार।

दोष लगावै और कौं, चाहै एक अहार॥

सुंदरदास

सुन्दर प्रभुजी पेट कौं, बहु बिधि करहिं उपाइ।

कौंन लगाई ब्याधि तुम, पीसत पोवत जाइ॥

सुंदरदास

सुन्दर प्रभुजी पेट कौं, दूधाधारी होइ।

पाखंड करहिं अनेक बिधि, खाहिं सकल रस गोइ॥

सुंदरदास

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