घास पर उद्धरण
प्रकृति, उर्वरता-अनुर्वरता,
जिजीविषा आदि विभिन्न प्रतीकों के रूप में घास कविता में उगती रही है।

अग्नि की महिमा इसी में मानी जाती है कि वह समुद्र में भी वैसे ही प्रज्वलित हो जैसे सूखी घास में।

हे राजिया! यदि सिंह मर भी जाए तो भी वह मिट्टी या घास नहीं खाता।