Font by Mehr Nastaliq Web

आकांक्षा पर कवितांश

जिनकी चाह मिट गई

वही पूर्ण रूप से स्वतंत्र है

शेष स्वतंत्र नहीं हो सकते

तिरुवल्लुवर

चाह छोड़ो

चाहरहित

ईश्वर से प्रेम करो

तिरुवल्लुवर

जिसकी कभी पूर्ति नहीं होती

उस तृष्णा को त्यागना चाहिए

तभी तुम्हें मुक्ति की दशा मिलेगी

जो सदा संतुष्टि प्रदान करेगी

तिरुवल्लुवर

उस तृष्णा का नाश अभीष्ट है

जो भयंकर दुख का स्वरूप है

तभी मनुष्य इस जीवन में भी

अधिक सुख पा सकता है

तिरुवल्लुवर
  • संबंधित विषय : सुख