जिनकी चाह मिट गई
वही पूर्ण रूप से स्वतंत्र है
शेष स्वतंत्र नहीं हो सकते
चाह छोड़ो
चाहरहित
ईश्वर से प्रेम करो
जिसकी कभी पूर्ति नहीं होती
उस तृष्णा को त्यागना चाहिए
तभी तुम्हें मुक्ति की दशा मिलेगी
जो सदा संतुष्टि प्रदान करेगी
उस तृष्णा का नाश अभीष्ट है
जो भयंकर दुख का स्वरूप है
तभी मनुष्य इस जीवन में भी
अधिक सुख पा सकता है