युग-बोध, राष्ट्र-निर्माण और महिला-लेखिकाओं का दायित्व
हम सभी सरस्वती के मंदिर के पुजारी हैं, देवता का महत्त्व ही हमारी आस्था को महत्त्व देता है। हमारा अभिनंदन-वंदन वस्तुतः एक ही गंतव्य की ओर जाने वाले पथिकों का परस्पर कुशल-क्षेम पूछना है। मार्ग में चलते हुए जैसे पूछ लेते हैं—तुम्हारा संबंध तो नहीं समाप्त