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सृजन पर दोहे

दोहे लिखकर के करूँ

क्या मैं भी गंगोज।

मन की गंगा बह रही

दोहे बनते रोज़॥

जीवन सिंह

'जीवन' लिखना बंद कर

लिखने से क्या होय।

बाहर से हँसता दिखे

भीतर भीतर रोए॥

जीवन सिंह

दोहा जिसका साथ दे

रहता उसके पास।

चौपाया दोहा मगर

नर से ज़्यादा ख़ास॥

जीवन सिंह

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