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भाई पर बेला

एक सामाजिक और पारिवारिक

प्राणी के रूप में कवि की अभिव्यक्ति में पारिवारिक संबंधों की धूप-छाँह, घर में गुज़रे पलों की स्मृतियाँ और दंश, नाते-रिश्तेदार आदि का उतरना भी बेहद स्वाभाविक है। इस चयन में प्रस्तुत भाई विषयक कविताओं में इस अनूठे संबंध की ऊष्मा और ऊर्जा को महसूस किया जा सकता है।

19 अगस्त 2024

जो रेखाएँ न कह सकेंगी

जो रेखाएँ न कह सकेंगी

एक युग बीत जाने पर भी मेरी स्मृति से एक घटा भरी अश्रुमुखी सावनी पूर्णिमा की रेखाएँ नहीं मिट सकी हैं। उन रेखाओं के उजले रंग न जाने किस व्यथा से गीले हैं कि अब तक सूख भी नहीं पाए—उड़ना तो दूर की बात है

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

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